अमरूद का पेड़ देखकर मुझे अपना बचपन याद आ जाता है।कई बार कुछ चीजे हमे अपने बचपन की ओर खींच ले जाती है।और हम उन मीठी मीठी यादों में खो जाते हैं। अक्सर छुट्टियों के समय हम अपनी नानी-नाना के गांव जाया करते थे। मेरे नाना के घर के आंगन में ही बहुत बड़ा अमरूद का पेड़ था, जिसकी शाखाएं पूरे आंगन में फैली हुई थी। जैसे ही हम घर पहुंचते सबसे पहले हम सब भाई बहन उस अमरूद के पेड़ पर ही चढ़ते और मीठे-मीठे अमरूद तोड़कर खाते। और खूब मस्ती करते। हमारा सारा दिन उस अमरूद के पेड़ के आसपास ही बीतता। कभी पेड़ पर चढ़ते, तो कभी पेड़ के नीचे बैठकर मिट्टी के खिलौने बनाते। नाना-नानी के घर जाने से हम हमेशा खुश होते कि अमरूद के पेड़ पर चढेंगे खूब मस्ती करेंगे। एक तरह से वो अमरूद का पेड़ घर का एक सदस्य था। मेरी मां का बचपन भी उस अमरूद के पेड़ के छांव में बीता। उस पेड़ से जुड़ी कई यादगार क़िस्से मां आज भी बताती है। कहीं ना कहीं उनकी बचपन की यादें और हम भाई-बहनों के बचपन की यादें एक साथ ही जुड़ी हुईं हैं। कितना सुंदर और प्यारा मासूम सा वो बचपन का दिन ,जो जीते जी मेरे स्मृति पटल पर हमेशा रहेगा। वक्त के साथ-साथ वो अमरूद का पेड़ भी बूढ़ा हो गया। और अमरूद के पेड़ को काटना पड़ा। आज वह आंगन सुना है, लेकिन सुनहरी यादें आज भी जीवंत है। आज जब भी मैं नानी के घर जाती हूं तो उस जगह को देखकर मुझे वह अमरूद का पेड़ बहुत याद आता है और बस वही बचपन की यादों में खो जाती हूं……….कुछ देर के लिए ही सही वहां जाकर मुझे बहुत-बहुत खुशी मिलती है। मेरा प्यारा अल्हड़ वो बचपन और…….. वो मेरा प्यारा अमरूद का पेड़ और बच्चों से खिलखिलाता वह हमारा आंगन।😊
मनीषा भुआर्य ठाकुर