मीरा मैं भी तेरी तरह
कान्हा को पाना चाहती हूँ।
पर राकेश जी से करती हूँ
प्रेम बहुत मैं,
दोनों बच्चों पर जान
छिड़कती हूँ।
मीरा मैं भी तेरी तरह
गिरधर के लिए जोगन
बनना चाहती हूँ।
पर भाइयों के नेह डोर से
बँधी मैं,
माँ-पिता पर अपनी जान
वारती हूँ।
मीरा मैं भी तेरी तरह
माधव की चाकर
बनना चाहती हूँ।
पर उपाध्याय सर की दी राह
भूल नहीं पाती मैं,
मंजु मौसी के नेह व आशी के
बिना तो चल भी नहीं पाती हूँ।
मीरा मैं भी तेरी तरह
गोविंद के दरस चाहती हूँ।
पाने को अपने सांवरियां को
वन-वन भटकना चाहती हूँ।
पर पीहर, ससुराल की
मर्यादा मैं,
भटक नही पाती हूँ।
मीरा मैं भी तेरी तरह
मोहन को…….।
गरिमा राकेश ‘गर्विता’
कोटा राजस्थान