ढोलक की आवाज, 
ऋतिक के कानों में गूंज रही थी! 
रात का तीसरा पहर करीबन रात दो बजे के आसपास का समय होगा “”
उसकी नींद उचट गयी “
शोर बढता जा रहा था ” जैसे उसके घर मे ही कोई ढोल पीट रहा हो “
उसका कान सुन्न हो रहा था! 
वो बडबडाया, हद हो गयी यार,  उस आवाज के आगे उसे खुद की आवाज़ भी न सुनायी दी”
अब शोर इतना बढ गया था  की वो गुस्से से बालकनी की ओर बढ गया जिधर से आवाज आने का अनुमान लगाया था उसने “
पर बालकनी मे आते ही, वो आवाज चारों तरफ से आने लगी, 
वो जोर से चीखा””””
कौन है यहाँ, इतनी रात में भी कोई भला ढोल बजाता है”
उसकी चीख इतनी तेज थी की आवाज आनी बंद हो गयी! 
ऋतिक ने इधरउधर झांक कर देखा कोई नजर न आया! 
अभी वो वापस मुडा ही था की मांदल की हल्की आवाज उसके कानों में पडी वो वापस पलटा, पर इस बार उसे जो नजर आया 
    “उसके मन में कौतूहल पैदा कर गया! 
क्वार्टर से करीब सौ फीट की दूरी से ही जंगल की शुरुआत हो जाती है! 
जहाँ से घुमावदार रास्ता जाकर चौरास्ता बन जाता है”
वही पर कुछ लोग नजर आ रहे थे! 
वही आलावा जल रहा था, जिसकी रोशनी में साफ नजर आ रहा था की कुछ लोग नृत्य कर रहे हैं! 
ऋतिक वही रिलिंग के सहारे टेका लेकर काफी देर तक खडा देखता रहा, 
आज तेरस की रात थी “
कुछ देर देखने बाद आकर सो गया! 
अगली सुबह से ही आसपास के छोटे फलिऐ की रिपोर्ट तैयार करने निकल गया! 
शाम वापस आया तो थकान से   बुरा हाल था! 
चौकीदार काशी ” 
ने गरम पानी से पैरो को अच्छे से मासाज कर दिया था! 
थकान कम हो चुकी थी! 
खाना खाने के बाद वो ऊपर आ गया था! 
और काशी नीचे कमरे में सो गया था! 
बिस्तर पर सोते ही उसे कल रात की घटनाएं याद आने लगी “
वो उठकर बालकनी में आ गया! 
सब ओर नजर दौडाई बहार घना अंधेरा था, 
वो वापस आ गया, और चद्दर ओढकर सोने का प्रयास करने लगा, उसे घर की याद आने लगी, 
आज दूसरा दिन था! 
तीन दिन के लिए वो सर्वे के लिए आया था! इस बियाबान में, 
घडी पर नजर डाली दस बजे रहे थे! 
ऋतिक,,, 
ऋतिक “”””
शायद कोई उसे आवाज दे रहा था! 
उसने आंखे खोली, कोई नजर न आया शायद, सपना था! 
वो पुन: सोने का प्रयास करने लगा “
अभी झपकी लगी ही थी, की “
मांदल की हल्की आवाज उसके कानों में गूंजने लगी “
वो उठकर बैठ गया! 
अब तो नींद सत्यनाश हो चुकी थी! 
वो उठकर बालकनी में आ गया “
कल जैसा ही आलावा जल रहा था! 
आज कुछ ज्यादा लोग नजर आ रहे थे! 
उसने घड़ी पर नजर डाली, और बडबडाया ये कैसा त्यौहार है जो रात बाराह बजे बाद शुरू होता, शहर होता तो समझ मे भी आता, रात को, इस सन्नाटे में “
अब नींद तो आऐगी नही “
चलो मैं भी आज पास से जाकर देखता हूँ! 
ऐसा विचार आते ही ऋतिक सीढियाँ से उतरकर, उस और बढ गया, जहाँ आलावा जल रहा था! 
अभी कुछ कदम आगे बढा होगा की पीछे से किसी ने पुकारा ” कहाँ जा रहे हो बाबू “
वो आवाज किसी लडकी की थी “
जो बहुत सुरीली थी! 
ऋतिक रूक गया “
वो लडकी उसकी ओर बढ रही थी! 
उसकी पायजेब की रूनझुन से ऋतिक को आभाष हो गया था! 
अभी कुछ क्षण गुजरे होगें ,की निहायत खूबसूरत लडकी ऋतिक के सामने खडी थी! 
वो चौदस की रात थी! 
आप  आप कौन ” इतनी रात ” में आप  यहाँ क्या कर रही है”
बाबू जी जंगल की तरफ इतनी रात जाना सही नही  होगा “
ऋतिक की बात काटी  उस युवती ने”
वो उत्सव हो रहा है न, वही जा रहा था! 
कहाँ हो रहा है उत्सव “
युवती ने ऋतिक की बात काट दी “
ऋतिक ने ऊंगली उसी दिशा में घुमाई “
कहाँ “”””
ऋतिक ने चौरास्ते की ओर देखा, 
वहाँ अंधेरो के सिवा कुछ नजर न आया! 
बाबू यह जंगल यहाँ कब क्या अनहोनी घट जाऐ, कोई नही बता सकता! 
उस युवती के शब्दों में कुछ ऐसा था! 
ऋतिक को सिहरन महसूस हुई, उसने वापस लौटने मे ही अपनी भलाई समझी””
चलो मै छोड़ देती हूँ! 
आपके मन में सवाल होगा, मै कौन हूँ! 
काशी की बहन, 
वो तो मै काशी को देखने आयी थी! वो घर नहीं आया, तो”
बोलकर नही आया था  न   “
यहाँ आपको इधर आते देखा तो सोचा सचेत कर दूं! 
जाईए आप सो जाईए “
और हा बाबू कल अमावस्या है , तो कुछ चीजों को नजर अंदाज करना, रात में मत निकलना “
अखिरी शब्द बोलते समय उस युवती का लिहाजा डरावना था! 
ऋतिक रातभर सो न सका “
उसे समझ न आया की अचानक जलती आग कहाँ गायब हो गयी!! 
धूप काफी फैल चुकी थी “
ऋतिक चौरास्ते की ओर बढ गया! 
वहाँ कुछ भी रहस्यमय जैसा नजर न आया! 
साहब, 
चौंक गया ऋतिक “
हा हकला कर बोला ऋतिक “
साहब क्या हुआ, काशी ऋतिक के चेहरे की ओर देखते हुए बोला “
वो रात आपकी बहन ने बताया था! 
की इधर आना खतरनाक है, 
पर साहब मेरी तो कोई बहन नही है, हा बडी बहन थी जिसकी शक्ल भी मुझे याद नही ” तब मै पांच साल का था “
वो किसी के साथ भाग गयी “
उसके जाने के बाद माँ बापू ने आत्महत्या कर ली, उनकी लाश ये सामने महुए के पेड पर लटकी मिली थी! 
मै बहुत छोटा था “
फिर मुझे गांव वालों ने सूखी बासी रोटी खिला खिला कर बडा कर दिया “अब छोटा मोटा काम करके पेट भर लेता हूँ! 
वो चश्मे वाले मास्टर साहब है, उनसे ही थोड़ा पढना लिखना सीख लिया है! 
अच्छा, 
चलो चलते हैं! 
महुए के पेड पर सरसरी नजर डालते हुए बोला ऋतिक”
वो अभी कुछ आगे बढा होगा, की महुए पर लटकी लाशें उसकी आंखों के आगे तैर गयी “
वो वही जड हो गया “
क्या हुआ साहब जी “
कुछ नही टालने की गरज से ऋतिक बोला “
बस आज ही की रात की बात है, सुबह तो काम पूरा होते ही निकल जाना है! 
सभी बातो को नजर अंदाज कर ऋतिक अपने काम में लग गया, 
शाम तक सारा कार्य पूरा हो चुका था! 
काशी “
जी साहब”
मै सोच रहा था की कार्य तो पूरा हो चुका है, 
आज ही शहर के लिए निकल जाता हूँ! 
पर साहब अमावस्या है, आज जाना ठीक होगा क्या, हम गांव वाले अमावस्या तिथि को सही नही मानते ” फिर भी साहब जी आप जाना चाहे तो, जा सकते है! 
काशी ने दलील दी “
अभी तो काफी उजाला है”
दो घंटे में जंगल पार हो   जाऐगा, अभी पांच बजे रहे है! 
सात बजे तक हाइवे पर पहुँच जाऊंगा, बाराह के पहले पहले शहर पहुँच जाऊंगा ” 
जैसा आपको उचित लगे साहब जी “””
ऋतिक ने फटाफट पैकिंग की “
जीप में बैठते ही जंगली बिल्ली अक्रामक मुद्रा में झपटी “
बडी मुश्किल से जीप के आगे से हटी “
जीप फुल स्पीड से जंगल का रास्ता तय कर रही थी! 
रात गहराने लगी थी! 
ऋतिक लगातार तीन घंटे से गाडी चलाऐ जा रहा था “
पर अभी भी हाईवे कही से भी नजर नही आ रहा था! 
सडक उबड खाबड होती जा रही थी! 
अचानक से गाड़ी से कोई जंगली जानवर टकराया, जिसे ऋतिक न देख पाया, शायद दृष्टि भ्रम था “
गाडी की स्पीड खुद ही कम होने लगी, शायद टायर पंचर हो गया था! 
सिड, 
माथा पकड लिया ऋतिक ने “
अब क्या करूं, 
जीप में रूकना सेफ नही था! 
वो मोबाइल की रोशनी में जीप से नीचे उतर गया! 
कुछ दूरी पर किसी मकान का पीछे का हिस्सा नजर आ रहा था! 
जहाँ लालटेन की पीली रोशनी साफ नजर आ रही थी! 
वो उधर ही बढ गया! 
लकडी के जीर्ण शीर्ण दरवाजे के सामने पहुँच कर कुछ तसल्ली मिली “
अंदर से कुछ आवाजे आ रही थी! 
अंतरा बिटिया, भैया को बापू के खाट पर सुला दो, 
ठीक है अम्मा “
ऋतिक को अंतरा की आवाज जानी पहचानी लगी “
ऋतिक दरवाजा बजाने वाला था की अंदर से आवाज आयी, 
बिटिया देखो शायद शहरी बाबू आये है, उन्हें कुछ चहिए दरवाजा खोल दो ” मर्दाना आवाज गूंजी, 
अच्छा बापू, 
ऋतिक सकते में आ गया, उसे समझ न आया,  की वो दरवाजे पर खडा है इसका पता इनको कैसे चला “
वो इधरउधर देखने लगा, कही कैमरा तो नहीं लगा “
उसके दिमाग ने सरगोशी की, इस जंगल में कैमरा, खुद की बेवकूफी पर खीझ आयी! 
भडाक के साथ दरवाजा खुल गया! 
अरे ये तो कल वाली लडकी है, काशी की बहन “
पर काशी कह रहा था उसके कोई बहन नही है! 
चलो अब मिला हूँ तो पूछ लूंगा “
वो ऋतिक की ओर देखकर मुस्कुराई, 
जैसे कोई प्रेमिका हो उसकी “
अंदर आ जाईये “
ऋतिक को आश्चर्य हुआ उसके पीछे से चार पांच लडके निकल कर उस लडकी के पीछे दौड पडे “
ये सब क्या है! 
वो पांच थे! 
और नशे की वजह से चीख चिल्ला रहे थे! 
ऋतिक ने उन्हें रोकने की कोशिश की पर वो परछाई जैसे थे! 
उनमें से दो ने उस लडकी के बापू और माँ को बांध दिया! 
फिर एक उस सोये हुए बच्चे की ओर बढा जिसकी नींद टूट गयी थी! वो सहम गया था “
डर से थर थर कांप रहा था “
एक ने उसे गोद में उठा लिया, और के सामने ही बाहर निकल गया! 
बचे दो युवकों मे से एक ने लडकी को दबोच लिया “
दूसरा उसके करीब पहुँच गया “”
छोडो वो चीख रही थी, 
और वो चारों नशे में धुत नंगा खेल खेल रहे थे! 
ऋतिक भी दौडकर उनके करीब पहुँच गया “
दरिंदों छोड दो,  उसे ऋतिक चिल्लाया पर उसे किसी न देखा न सुना, 
वो आत्मा की तरह उसको बचाने की चेष्टा कर रहा था! 
वो कुछ नही कर पा रहा था! 
सारी घटना उसके सामने घट रही थी! 
एक ने उस लडकी के सारे कपड़े फाड़  दिऐ, अब उसका पूरा तन साफ दिखाई दे रहा था! 
ऋतिक ने आंखे बंद कर ली “
वो आगे न देख सका “
जब उसने डरते डरते आंखे खोली तो सहम गया “
वो दारिंदे बुरी तरह उसपर हावी थे! 
उस लडकी की उम्र मुश्किल से सोलह सत्रह की रही होगी “
उसका शरीर बेजान था शायद उसने कोई जहरीली वस्तु खा, ली, थी! 
अरे पागल छोड़ वो मर चुकी है “
ऐसे कैसे, देख मारे उसकी बला से, जो मुझे करना है करूँगा “
ऋतिक सिर पकड कर दीवार के सहारे बैठ गया! 
वो सिसक रहा था! 
बस करो दरिंदो, बस करो”
और वो चारों हैवान अभी भी अपनी हवश में लिपटे थे! 
पाचवां युवक अंदर आया तो उसके होश उड गये! 
वो उनके करीब पहुंचा, 
ये क्या कर डाला तुम लोगो ने “
उस लडकी का जिस्म नीला पड चुका था! 
ऋतिक के देखते ही देखते, उस लडकी को उसी मकान में गाड दिया “
फिर उसके माँ बाप का गला घोट दिया “
और उन्हें रस्सी के सहारे महुए के पेड पर लटका दिया “
ऋतिक के सामने सारी घटनाएं घट रही थी ” चलचित्र की तरह”
बच्चा कहाँ गया, ऋतिक घर के बाहर भागा “
उसे ठोकर लगी वो गिर गया! 
उसने आंखे खोली तो मादंल की थाप सुनायीं दी “
कुछ ग्रामीण घसीटते हुए उन पांचों को खीचकर जलते आलावे के पास ले आऐ”
और फिर पांचो की नरबलि “
डर के मारे ऋतिक के हाथ पैर फूल गये “
उन पांचों के जिस्म जल रहे थे,जिसकी दुर्गंध चारो ओर फैल रही थी “
ऋतिक को उबके आने लगे “
किसी ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा वो पलटा, उसकी आंखे फटी रह गयी “
वो अंतरा थी! 
मुझे मुक्ति दे दो, उसकी आंखो में आंसू थे! मै”  मै, कैसे “ऋतिक घबराकर बोला”
काशी द्धारा “
वो अगर सच्चाई देख लेता तो शायद मर जाता, 
अंतरा ने ऋतिक को मुक्ति मार्ग का सुझाव बता दिया “
ऋतिक के पैरो से जमीन खिसक गयी! 
वो वही खडा था, जहाँ शाम  जंगली बिल्ली ने रोकने की कोशिश की थी!  उसे आश्चर्य था की तीन घंटे वो जीप जंगल मे ही घूमता रहा “
सुबह ही थाने पहुँच गया ऋतिक, पुलिस के देखरेख में, उसने अंतरा के नरकंकाल को काशी के हाथों, दाहसंस्कार करवाया “
काशी को कुछ रूपये देकर शहर, की ओर जीप बढा दी “
रह रहकर उसे वो घटना याद आ रही थी “
किसी ने उसके कान में सरगोशी की, जब भी दरिंदे जंगल में कदम रखेगें, मै फिर आऊंगी “
ऋतिक चौक गया, गया! 
पर आगे उसे हाईवे  साफ नजर आ रहा था! 
उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गयी! 
समाप्त “”
रीमा  महेंद्र ठाकुर
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश
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