मैं ही प्रकृति, दृष्टि और मैं ही सृष्टि हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
गृहिणी, गृह लक्ष्मी गृह स्वामिनी भी मैं हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
आर्या, दुर्गा और भार्या भी मैं ही हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
रिद्धि-सिद्धि और समृद्धि भी मैं ही हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
काली, कालरात्रि, कात्यायनी भी मैं हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
ममता, क्षमा, दया की देवी भी मैं ही हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
गंगा ,जमुना, सरस्वती, त्रिवेणी भी मैं हीं हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
प्रेम, प्रेरणा, और आराधना भी मैं ही हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
कल की राधा, मीरा, सीता भी मैं ही हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
आज की रणचंडी लक्ष्मीबाई भी मैं ही हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।।”
अम्बिका झा ✍️