कौन हूं मैं
क्या है अस्तित्व मेरा,
क्या हूं शून्य मैं,
हाँ शून्य हूं
भावनाओं का कोई मोल नहीं
प्रेम का अस्तित्व नहीं
मृत अंतर्मन,
सत्य और झूठ क्या
चक्रव्यूह सा है अंतर्मन
क्षण क्षण बदलता रूप ,
शतरंज की बिसात में,
हाँ शून्य हूँ
शून्य क्या है,क्या है अस्तित्व शून्य का
मानो तो कुछ नहीं,
मान लो तो अनगिनत मोल हूँ
लाखों की भीड़ में भी
मैं शून्य हूँ,
अपना अस्तित्व लिए,
ठहराव का एहसास लिए,
ब्रह्माण्ड की आवाज हूँ
अंत का आरम्भ हूँ
जीवन का सफर भी शून्य है
शून्य ही जगत का मोल है
शून्य से शुरु हुआ सफर
शून्य में ही मिल जाना है
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर उत्तराखंड