मैं ही सत्य हूं,स्वयंभू हूं।
मैं ही भोला ,मैं ही संहारक हूं।
मैं ही स्वामी हूं शक्ति का ।
पर शिव ‘शव’ है बिन शक्ति का।
हलाहल पीकर बना नीलकंठ हूं मैं।
कभी दयालु तो कभी प्रचंड हूं मैं।
मैं ही महादेव,अर्द्धनारेश्वर हूं।
मैं ही स्कंदजनक,तारकेश्वर हूं।
मैंने वासुकि को गले में डाला।
चंद्र सुशोभित मेरे कपाला।
मुझसा सादगीपरस्त ना कोय।
डमरूस्वर से व्याकरण सूत्र उदय होय।
मैं ही सदाशिव,भव्य,दयाकर।
मैं ही वृषांक,वामदेव,गुणाकर।
मैं ही कृतागम,अजातशत्रु,विशाख:।
मैं ही सर्वगोचर,महौषधि,गोशाख:।
              -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण।
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