मैं लिखना चाहता हूँ
गम की परछाइयों को
छल की दास्तानों को
मरुभूमि की प्यास को
मैं लिखना चाहता हूँ
कटे पंख परिंदों की बेचारी को
भुखमरी और लाचारी को
विषधरों की ताजपोशी को
मैं लिखना चाहता हूँ
ऊंच नीच के पाटों में दम तोड़ती
महजब, जाति के फंदे पर झूलती
अधूरी प्रेम कहानी
मैं लिखना चाहता हूँ
कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार
जिम्मेदार कर्माचारियों की
दास्तान ऐ उत्पीड़न
मैं लिखना चाहता हूँ
उस पांचाली की व्यथा
पंच शक्तिशाली पतियों की भार्या
आबरू रक्षण को पुकारती श्याम को
मैं लिखना चाहता हूँ
रणभूमि में गिरे टूटे पहिये की व्यथा
सात महारथियों से घिरे पार्थसुत का
अबलंबन अंतिम
मैं लिखना चाहता हूँ
धरा की त्रास 
पालीथीन दैत्य से दम तोड़ रही 
निज संतान की करनी भुगतती बेबस माॅ 
मैं लिखना चाहता हूँ 
गहरे जख्मों की कहानियाॅ 
भूलती नहीं जो 
रक्त विंदुओ में समायीं 
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’
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