धारावाहिक भाग -३
आगे भगत सिंह लिखते हैं- इस समय तक मैं केवल एक रोमांटिक आदर्शवादी क्रांतिकारी था। अब तक हम दूसरों का अनुसरण करते थे। अब अपने कंधों पर जिम्मेदारी उठाने का समय आ गया था। यह मेरे क्रांतिकारी जीवन का एक निर्णायक बिंदु था। ‘अध्ययन’ की पुकार मेरे मन के गलियारों में गूंज रही थी – विरोधियों द्वारा रखे गए तर्कों का सामना करने योग्य बनने के लिए अध्ययन करो। अपने मत के पक्ष में तर्क देने के लिए सक्षम होने के लिए पढ़ो। मैंने पढ़ना शुरू कर दिया ! इससे मेरे पुराने विचार व अविश्वास अद्त रूप से परिष्कृत हुए । रोमांस की जगह गंभीर विचारों ने ले ली। न और अधिक रहस्यवाद ,न ही अंधविश्वास। यथार्थवाद हमारा आधार बना। मुझे विश्वक्रांति के अनेक आदर्शों के बारे में पढ़ने का खूब मौका मिला । मैंने अराजकतावादी नेता बाकुनिन को पढ़ा ,कुछ साम्यवाद के पिता मार्क्स को ,किंतु अधिक लेनिन, त्रास्की , व अन्य लोगों को पढ़ा , जो अपने देश में सफलतापूर्वक क्रांति लाए थे। ये सभी नास्तिक थें। बाद में मुझे निरलम्ब स्वामी की पुस्तक ‘सहज ज्ञान ‘ मिली। इसमें रहस्यवादी नास्तिकता थी।
1926 के अंत तक मुझे इस बात का विश्वास हो गया कि एक सर्वशक्तिमान परमात्मा की बात, जिसने ब्रह्मांड का सृजन, दिग्दर्शन और संचालन किया, एक कोरी बकवास है । मैंने अपने इस अविश्वास को प्रदर्शित किया। मैंने इस विषय पर अपने दोस्तों से बहस की। तब मैं एक नास्तिक घोषित हो चुका था।मई 1927 में मैं लाहौर में गिरफ्तार में गिरफ्तार हुआ। रेलवे पुलिस हवालात में मुझे एक महीना काटना पड़ा। पुलिस अफसरों ने मुझे बताया कि मैं लखनऊ में था, जब वहां काकोरी दल का मुकदमा चल रहा था तब मैंने उन्हें छुड़ाने की किसी योजना पर बात की थी, उनकी उनकी सहमति पाने के बाद हमने कुछ बम प्राप्त किए थे। जो कि 1927 में दशहरा के अवसर पर उन बमों में से एक परीक्षण के लिए भीड़ पर फेंका गया , यदि मैं क्रांतिकारी दल की गतिविधियों पर प्रकाश डालने वाला एक वक्तव्य दे दूं तो मुझे गिरफ्तार नहीं किया जायेगा और इसके विपरीत मुझे अदालत में मुखबिर की तरह पेश किए बगैर रिहा कर दिया जाएगा और इनाम भी दिया जाएगा ।
मैं इस प्रस्ताव पर हँसा। यह सब बेकार की बात थी । हम लोगों की भांति विचार रखने वाला अपने निर्दोष जनता पर बम नहीं फेंका करते । एक दिन सुबह सी.आई.डी .के वरिष्ठ अधीक्षक श्री न्यूमन ने कहा कि यदि मैंने वैसा वक्तव्य नहीं दिया ,तो मुझ पर काकोरी केस से संबंधित विद्रोह छेड़ने के षड्यंत्र तथा दशहरा उपद्रव में क्रूर हत्याओं के लिए मुकदमा चलाने पर बाध्य होंगे , और उनके पास मुझे सजा दिलाने व फांसी पर लटकाने के लिए उचित प्रमाण हैं। उसी दिन से कुछ पुलिस अफसरों ने मुझे नियम से दो समय ईश्वर की स्तुति करने के लिए फुसलाना शुरु किया। पर अब मैं एक नास्तिक था । मैं स्वयं के लिए यह बात तय करना चाहता था कि क्या शांति और आनंद के दिनों में ही मैं नास्तिक होने का दम्भ भरता हूँ या ऐसे कठिन समय में भी मैं उन सिद्धांतों पर अडिंग रह सकती हूँ। बहुत सोचने के बाद मैंने निश्चय किया कि किसी भी तरह ईश्वर पर विश्वास तथा प्रार्थना मैं नहीं कर सकता। नहीं, मैंने एक क्षण के लिए भी नहीं की। यही असली परीक्षण था और मैं सफल रहा। अब से मैं एक पक्का अविश्वसी था और लगातार हूँ।
क्रमशः
गौरी तिवारी भागलपुर बिहार