हां मैं नारी हूं,
प्रभु की अनमोल रचना हुं।
कभी दुर्गा कभी शक्ति हुं मै,
दुष्टों पर कर प्रहार महा काली हुं
हां नारी—-
मेरे हैं रुप अनेक कभी राम की
सीता बन के त्याग की मूर्ति हूं मैं
कृष्ण की राधा रानी बन के प्रेम की
प्रतीक मुर्ति हुं मैं
हां नारी हूं—
ममतामयी मां पार्वती का प्रतिबिंब हुं मैं
मां सरस्वती के वीणा की झंकार हुं मैं।
नारी हूं—
फिर भी ये समाज क्यों नारी के रूप को हीन दृष्टि से देखा है।
हर युग में नारी ने अपने बुद्धि कौशल का परिचय दिया है।
नारी हूं मैं ममता का परिचायक हूं मैं
कभी मां बहन और भार्या बनकर
हर रिश्ते को प्रेम के अटुट बन्धन में बांधने की कोशिश हुं मैं
नारी हूं मैं।
कभी बेटी बनकर एक पिता के आंखों
का तारा हुं मैं।
हर रिश्ते को बांध कर रखने की ताकत हुं मैं
नारी हूं मैं
अर्चना पांडेय”आर्ची
गोरखपुर