जीवन पथ पर थके पथिक की , दुपहरी की ठांव हूं!
शोर नहीं हूं शहर का मैं , तो सीधा-साधा गांव हूं !!
सतरंगी फूलों की  खुश्बू , भरकर अपनी सांसों में,
रजनीगंधा बनके महकता हूं , विरानी सी रातों में 
अमलतास के गुण हैं मुझमें, गुलमोहर की छांव हूं ।
शोर नहीं…………..
तूफानों से लड़कर लौटा ,सागर की गहराई नापी है
हौसला ही मुश्किलों में , एकलौता हमारा साथी है
मैं साध गया बाधाओं को, साहिल पर पहुंची नाव हूं ।
शोर नहीं …………..
मेरी गलियों में बचपन अपना ,अब भी तुम पाओगे
पगडंडी पर पदचिन्ह मिलेगा, जब भी वापस आओगे
मैं सिर का ताज नहीं हूं तेरे , धरती पर टिकता पाव हूं ।
शोर नहीं………….
स्वरचित :
पिंकी मिश्रा भागलपुर बिहार।
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