(‘विश्व कविता’ दिवस पर कविता)
मैं कविता का प्रेम पुजारी,
कविता कविता करता हूँ।
जब दिल चाहे लिखता हूँ,
जब ये मन चाहे पढ़ता हूँ।
कविता मेरे रग में बसी है,
कविता बिना ना रहता हूँ।
कलम उठाता हूँ जब तब,
मैं कविता केवल रचता हूँ।
कवि भाव में जो आ जाये,
शब्दों में पिरो के रखता हूँ।
कविता बिना अर्धजीवन है,
कविता में मस्त मैं रहता हूँ।
भाव हमेशा सुन्दर होता है,
सरल शब्दों में लिखता हूँ।
किन्तु दोस्तों श्लेष कवि हूँ,
मैं दो अर्थी भी लिखता हूँ।
जिसमे सबको आनंद आये,
वैसी कविता मैं लिखता हूँ।
हर पहलू का दो अर्थ होता,
जिसे जो भाए वही लगाये।
मेरा भाव तो केवल अच्छा,
मैं इसी लिए तो लिखता हूँ।
मेरे कविता में रूप अलग हैं,
भाव अलग स्वरुप अलग हैं।
उसे चाहने वाले भी बहुत हैं,
मुझे चाहने वाले भी बहुत हैं।
कभी कभी ही सही मगर मैं,
कविता ये लिखता रचता हूँ।
मा लक्ष्मी के कोख से जन्मा,
माँ सरस्वती से रिश्ता गहरा।
मेरे परबाबा भी एक कवि थे,
उनका गुण मुझमे आ ठहरा।
कभी काव्य पाठ में हूँ जाता,
यदा कदा सुनने भी हूँ ठहरा।
कविता संग मेरा नाता गहरा,
कविता का ही मुझपर पहरा।
कविता का हूँ मैं प्रेम दीवाना,
कविता भरा है मेरा खजाना।
नई कविता संग दिन बितायें,
‘विश्व कविता’ दिवस मनायें।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.