उष्णता से मिलन के पहले था शांत शीतल जल।
आंच की छुअन से ही हमारे प्रेम की भांति पड़ा उबल।।
फिर डाली उसमें मैंने चंद चायपत्ती तेरे प्यार सी।
उस उबाल में फैली लालिमा शर्मिली निखार सी।।
अपने श्वेत धवल मनमीत सा उसमें मैंने जो दूध मिलाया।
प्रियतमा के गुलाबी गालों सा तब मैंने वो रूप पाया।।
डाला उसमें फिर वो मिठी सी छोटी शक्कर की डली।
मेरे मधुर जीवन की भांति मिठास उसमें भी यूं घुली।।
मिलाया मैंने उसमें फिर कुछ मसाले अपनी नोक झोंक सी।
अदरक इलायची की सुगंध बिखर गई हमारे प्रीत योग सी।
ताप की आंच पर उसका सुंदर स्वरूप पूर्ण हुआ।
ज्यों जीवन की धूप तपकर हमारा प्रेम सम्पूर्ण हुआ।।
सुंदर पात्र में उतारा जब इसे अपनी चाहत की तरह ।
तेरे संग का बहाना मिल गया मुझे तब राहत की तरह।।
सिमट कर प्याली में वो सोंधी महक घोलती जाये।
तेरे कंचन आनन सी है प्रियतम “मैं और मेरी चाय” ।।
मौलिक व स्वरचित कीर्ति रश्मि “नन्द( वाराणसी)