मैं और मेरी कलम 
दोनों के बीच में है बंध अलग नहीं होती है 
दोनों के मध्य स्थित है 
शायद कोई अनुबंध
 यह मुझे कभी तन्हा नहीं करती 
गम खुशी में हरदम साथ है देती
  भीड़ हो या तन्हाई
 यह मेरे संग रहती 
मेरी सोच के तानों बानो को
शब्दों में बुनती हैं 
ना हंसती है 
ना रोती है 
ना डरती है 
कभी पढ़ने वाले को प्रभाव 
का एहसास है कराती 
बिना भेदभाव हर रंग सजाती है
 मेरी कलम और मैं परछाई 
साथ साथ निभाती है 
गरिमा राकेश गौतम 
खेडली चेचट कोटा राजस्थान
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