इस जग में, मैं पग पग खेला।
पर रहा मेले में अकेला।।
खूब मिले भटकाने वाले, कोई गुरु तो कोई चेला।
मेरा कोई संगी न हुआ, चलता रहा मैं हर दम अकेला।।
इस जग में, मैं पग पग खेला…
मुफ्त की राय देते रहे सब, ब्याज में मुझको साथ मिला।
मित्र पड़ोसी सब व्यापारी थे, न कोई हाथो में हाथ मिला।।
इस जग में, मैं पग पग खेला…
करता कर्म चला रहा मैं, होती गयी समय की बेला।
बाँध पोटली पगडंडी पे, लक्ष्य भेदने चला अकेला।।
इस जग में, मैं पग पग खेला…
~राधिका सोलंकी