इस बार की होली में मेरे पीहर वाली बात नही
इस बार की होली में दिल मे वो जज्बात नही
रँग चढ़े चाहे तन पर मेरे, चाहे खेलूँ पिचकारी से
इस बार की होली में लेकिन सखियों की मीठी बात नही।
पकवान बनाऊँ कितने ही चाहे, मैं अपने इन हाथों से
पर मेरे हाथ के खाने में, मेरी माँ के हाथ का स्वाद नही
चाहे बनाऊँ खीर या हलवा या फिर मीठी-मीठी गुजिया
पर मेरे हाथों की उन गुजियों में, मेरे पीहर का प्यार नही।
माना कि सब कुछ है आज, बनकर माँ का आशीर्वाद
पति मिला भगवान के जैसा, बच्चों का भी मिला है साथ
लेकिन फिर भी क्यों लगता है, जैसे कहीं कुछ छूट गया है
सिर्फ नही मेरा बचपन, अब अल्हड़पन भी रूठ गया है।
बहने छूटीं, भाई छूटे, छूट गया भाभियों का साथ
वो गलियाँ छूटीं, रस्ते छूटें और छूट गया वो शहर भी आज
फिर भी यादों में बसते वो पल जो बीते थें अपनों के साथ
आज की होली पता नही क्यों, मुझे दिलाए सबकी याद।
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लेखिका-कोमल भलेश्वर
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