मेरे पथ प्रदर्शक के लिए सरेआम कोई सवाल न पुछो।
किस तरह किया होगा उजाला मेरी राहों में हाल न पूछो।
कभी चाहतों को जलाया होगा कभी अपने हृदय को,
फिर भी कैसे रखा होगा मुस्कान को संभाल न पूछो।
जीवन की गहरी खाई को अपने विचारों से रौशन किया होगा।
मेरे लिए आगे न बढ़ पाए होंगे अरमान दिल में दफन किया होगा।
रहे वो ज्ञान के देवता शिव समान हरदम फटेहाल न पूछो।
मेरे भविष्य निर्माता बने थे कैसे तीसरी नेत्र डाल न पूछो।
मेरी छवि में देखते होंगे अपने सपनो को साकार होते।
सम्पूर्ण जीवन को जिया होगा स्वयं में मेरा अवतार होके।
प्रथम वंदनीय आज वही हैं मेरे, गौरी के वो लाल न पूछो।
अपने ऐबी रूप में भी हमें दिया कितना सुंदर ढाल न पूछो।
हैं आज वह हर रूप में हर स्वरूप में मेरी आत्मा के संग
संभाल रखा है उन्हे अब भी अपने हरेक रिश्तों के रंग में रंग
ढूंढ़ लेता है मन कहीं भी उपमा दे के उन्हे बेमिसाल न पूछो
पंख के बजाए जमीं पर दिया कैसे उन्होंने कदमताल न पूछो।
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मौलिक व स्वरचित
~ कीर्ति रश्मि “नन्द”
( वाराणसी)