कठोर बनकर घरदारी सिखाती है,
अच्छे बुरे की पहचान हर कंदम पर करवाती हैं,
मेरी नादानियों पर औरो की डाट चुपचाप सह लेती है,
लेकिन इस बात का शिकवा वह कभी नही करती हैं।।
जो सपने रह गए थे अधूरे उंसके,
फिर से उन सपनो को बुनने लगी है,
मुझे क़ामयाब बनाने लिए आज कल मेरे साथ चलने लगी है।।
अक्सर रातों को मेरे साथ जगती है,
किताबो में लिखी बातों को वह न के बराबर समझती,
फिर भी मेरे साथ बैठकर पूरी रात मुझे तकती है।।
घर मे लोग चाहे जितने भी हो 
लेकिन घर को घर सिर्फ़ वह बनाती है,
मैं चाहे जहा से आऊँ सबसे पहले मेरी नज़रे उसे ढूढ़ती है।।
मेरी गलती पर सजा भी देती है,,
फिर अकेले में सबसे छिपकर आँसू भी बहाती है।।
मुझे कामयाब होता देख वो खुद को 
कामयाब समझती है मुझे बेहतर बनाने का 
प्रयास वह हमेशा करती है।।,
दुनिया से नौ महीने ज्यादा वह मुझे जानती है
दर्द का रिश्ता है तुझसे मॉ तू बिन बोले मेरे जज़्बात समंझ जाती है।।
शब्द नही  है पास मेरे मॉ तेरा गुणगान करने को,,,
शब्दो मे तुझे कैसे बाँधू कैसे तेरी तो कोई पार नही है।।
रचनाकार,,, सुमेधा शर्व शुक्ला
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