जुल्फों की है बद्री छाई
चमक रही है बिंदिया वैसे
लालिमा लिए खुबसूरती आई
नाक नथनी पिया को भाए
झूमका कानों में है संगीत गुनगुनाए
आंखियन तो है पिया दर्श को ललाए
खिला कमल सा मुखड़ा भाए
लग कर काजल भी खिल जाए
होंठ तो मधुरस का पान कराए
संग तेरे बैठ कर मैं
करुं ठिठोली
बिखरे आभा और
बन जाऊं मैं रुप की ज्योति
संग मैं तेरे हो जाऊं पूरी
बामांगी हूं और हूं
मैं पिया अलबेली
कर आलिंगन में क्षितिज हो जाऊं
पियाप्रेम में, मैं खुद को खो जाऊं
सुबह शाम में बस सिंदुरी हो जाऊं
प्रियतम की प्रिया बन
खोती ही जाऊं
प्रिया प्रसाद✍️