कभी-कभी लिखने को कितना कुछ होता है।
कभी-कभी ये दिल एक-एक शब्द का मोहताज होता है।
लिखने की आदत क्या लगी जनाब, कभी-कभी हर लम्हा लिखने को जी करता है,
लिख दूं अपने दिल की हर बात कमबख्त चहरे से ज्यादा,
जज़्बात शब्दों में बयां करता है।
मेरी कलम जो दिल के मोती पीरोकर शब्दों की स्याही से पन्नों को सजाती है,
इस दिल से निकली हर आह बयां कर जाती है।
लिखने को कितना कुछ है दिल की ख्वाहिशों में,
पर जनाब ये जालिम जमाना न लिखने देता है, न इस मासूम दिल के भाव बयां करने देता है।
प्रिया धामा
भिलाई, छत्तीसगढ़
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