अब शहर मेरा सूनासूना लगता है
मोहब्बत की निशानी है जिसमे
दुनिया का आठवां अजूबा
जिसकी एक झलक को
देखने मेला सा लगता है
महा कवि सूर दास  की जन्म स्थली
महादेवी वर्मा ,गोपाल दास नीरज
जेसेकवि  का शहर
बड़ा अनजान बेगाना सा लगता है
चारो तरफ ऊंची ऊंची 
सीमेंट की बिल्डिग
जिनके आगे सब
बोने नजरआते हैं
अपनी ही धुन में
दौड़ते भागते सभी
सड़को पर केवल जाम
ही जाम लगता है
मेट्रो की तैयारी में हर तरफ
छाए धूल के अंबार
जिससे ढक गया  सारा शहर
देश विदेश में यहां के जूतो
का है बड़ा नाम
चमड़े की कतरनों के
लगे यहां वहां ढेर
जहां कभी बहती थी यमुना
एक पतली सी लकीर
दिखाई अब देती है
रिश्तों से गायब हो गई मिठास
इसीलिए  चाशनी में डूबा पेठा 
भी फीका फीका लगता है।
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