मेरा शहर
लहूरी काशी के हम वासी,
रहते हैं हम प्रेम के प्यासी,
बहती है यहाँ पवित्र गंगा,
है परिंदे हम उसी शहर के,
शंकर भी है यहाँ के वासी,
जिसे कहते है हम लहूरी काशी,
तंग गलियों से भी आती है वो चाय कि सोंधी खुशबू,
मंद हवाओं से भी आती है वो फूलों की भीनी खुशबू,
परायों को भी अपना बनाता,
सुख दुःख मे वो सबके साथ रहता,
घाटों पे हसते खेलते बच्चे,
मंदिरों मे आते भक्त सच्चे,
फौजियों का है शहर जो देते देश के लिए अपनी कुर्बानी
ऐसा है शहर मेरा ,
जिसे कहते है हम लहूरी काशी ।