हर ज़ख्म सह कर चला हूं हर दर्द से गुजरा हूं
जानता हूं मैं हाल तेरा में हर मर्ज से गुजरा हूं
ना कीजिए नसीहते तुम मेरा ये हाल देख कर
तुम फूलों की राह चले हो ओर में गर्द से गुजरा हूं
लिखे थे खत कभी मैंने तेरी मुहब्बत के इज़हार मे
तेरे हर लफ्ज़ को जिया है मैंने, हर हर्फ से गुजरा हूं
सुना था मैंने कभी इश्क आग का दरिया सा है
मैं कभी आग पर चला हूं कभी बर्फ से गुजरा हूं
नहीं रहा वजूद कोई मेरा, एक तेरे नाम के सिवा
इक तुझसे ही मुहब्बत है मुझे इस दर्प से गुजरा हूं
π@अमित™