नौकरी की खातिर दर – दर भटकते हुए अपने जीवन के अनमोल पलों को बच्चों के लिए कमाने और कुछ पैसे बचत करने के लिए काट दिए । होली दीपावली और बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों में ही तो हमारा जाना होता था । दोस्तों .. रिश्तेदारों और यारों के तानें हमने जिंदगी के इतने वर्षों में कितनी बार ही सुने हैं । उनके द्वारा बोले जा रहे तानों पर उनका हक था यह भी मैं जानता हूॅं । यह फौज की नौकरी होती ही ऐसी है । दुश्मनों से हमारी लड़ाई की बात तो सभी जानते हैं लेकिन  हमें अपनी स्वयं की  छुट्टियों के लिए भी विभाग से  लड़ाई करनी पड़ती है यें बहुत कम ही लोगों को मालूम हैं तभी तो हमारी मजबूरियों को  हमारे स्वयं के नाते –  रिश्तेदार ..  दोस्त –  यार तक नहीं मानते हैं । क्या हमें अच्छा लगता है हमारे घर के ही बेटे या बेटी की शादी हो और हम उसमें शामिल ना हो पाए क्या इससे बड़ा दुख और कोई हो सकता है  भला ? मन को चोट कर रह जाता है लेकिन फिर भी हमें अपना फर्ज निभाना पड़ता है । वह फर्ज जिसके लिए हम अपने पूरे परिवार … समाज और राज्य को छोड़कर इस धरती माॅं  की सेवा के लिए आएं  हैं । यह  विभाग भी तो हमारी मजबूरियों को नहीं समझता है । जब हमें छुट्टियों की जरूरत होती है वह हमें छुट्टियां नहीं दे पाता है ।  तुम्हें याद है ना  उमा !  जब बाबूजी की मृत्यु हुई थी मैं उस वक्त  कश्मीर में तैनात था ।  कश्मीर के हालात भी तो  ठीक नहीं थे इसी वजह से  मैं तुम्हें अपने साथ नहीं रख रहा था ।  तुम घर पर ही थी । मुझे संतोष है कि कम से कम बाबूजी का बेटा तो उनके  अंतिम समय में उनके साथ नहीं था लेकिन उनकी बहू ने अपनी सेवा से मरने से पूर्व  बाबूजी का दिल जीत लिया था । माॅं  ने मुझे बताया था किस तरह बाबूजी अंतिम समय में तुम पर स्नेह लुटाया करते थे । जब बाबूजी इस दुनिया से विदा हुए मैं उनके अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाया था बड़े भैया ने उन्हें मुखाग्नि दी लेकिन मुझे अभी तक  अफसोस है  कि मैं अपने पिता से उनके अंतिम समय में भी मिल नहीं पाया । 
उमा ! मैंने पैसे  बहुत कमा लिए ।  बचत कर  इतना तो कमा ही लिया है कि रिटायरमेंट के बाद आराम से अपनी जिंदगी बिता सकें । ईश्वर की कृपा से दोनों बच्चों को भी मैंने इस लायक बना दिया है कि वह अपनी जिंदगी में ही व्यस्त है । हमने तो अपना फर्ज निभा दिया । एक वक्त था जब दोनों बच्चे हमारे साथ रहते थे लेकिन अपने भविष्य के सुनहरे सपनों को पूरा करने के लिए धीरे – धीरे वें  हमसे दूर होते चले गए ।  हमने भी उन्हें दूर होते हुए भी यह जानकर नहीं रोका के वह कब तक हमारे पास रहेंगे ?  एक –  न –  एक दिन उन्हें हमसे दूर होना ही है । उनके सपने की तलाश पूरी तो हो गई और उन्हें मंजिल भी मिल गई  और वह अपनी जिंदगी में रम  भी गए लेकिन अपने माता –  पिता को अकेला छोड़ गए ।  चिड़िया के बच्चे बड़े होने पर अपने माता – पिता को छोड़कर दूर उन्मुक्त गगन में उड़ जाते हैं और कभी लौट कर वापस नहीं आते ।  हमारे बच्चे भी कभी-कभी तो हमसे मिलने आते हैं । मैं अपने बच्चों को क्या दोष दूं ।  मैंने भी तो अपने माता – पिता के साथ यही किया था । पैसे कमाने के लिए उनसे दूर हुआ और ऐसा दूर हुआ कि  वों  मुझसे दूर हो गए लेकिन मैं उनके करीब ना जा सका । घर –  परिवार का बिछोह  मुझसे बेहतर कोई भी नहीं जान सकता है । अगले महीने मैं रिटायर हो जाऊंगा । नौकरी के इतने सालों में हमने अपने देश के अलग – अलग राज्यों में अपना  गुजर –  बसर किया हैं । इन राज्यों में रहने के कारण हमें यहाॅं  के लोगों .. इनकी परम्पराओं और   यहाॅं  की संस्कृति को भी समझने का मौका मिला है लेकिन जो खुशी मुझे मेरे गांव में मिलती  थी  वह खुशी मुझे आज तक कहीं और नहीं मिली । उमा !  अबकी बार गाॅंव चलते हैं । हम चार भाइयों में से एक भाई का परिवार अभी भी तो गाॅंव‌ में ही रहता है और वह मुझे बार बार वहाॅं  आने के लिए कहता भी रहता है । बरसों बीत गए हम गाॅंव नहीं गए । बाबू जी की बरसी पर जैसे – तैसे लड़ – झगड़  कर मैंने महकमें से छुट्टी ली थी  और गाॅंव पहुंचा था । इस घटना को बीते कई साल हो चुके हैं ।  मेरी इच्छा है कि रिटायरमेंट के बाद की  आगे की जिंदगी हम गाॅंव में ही बिताए । जीवन के अंतिम क्षणों तक मैं गाॅंव में रहना चाहता हूॅं उमा । वहाॅं  जाकर अपने बचपन को जीना चाहता हूॅं ।  वहाॅं  की ताजी हवा में अपने आपको तरो – ताजा करना चाहता हूॅं ।  इस भाग – दौड़ भरी जिंदगी में  ठहराव  चाहता हूॅं । अपनी जन्म  धरती को नमन कर वहाॅं पर ही  अपनी जिंदगी के यादगार पलों को बनाना चाहता हूॅं । उम्र के इस पड़ाव में जब मैं रिटायर हो रहा हूॅं  मुझे पैसों की नहीं बल्कि परिवार की जरूरत है और आज के परिवेश में परिवार गाॅंव में ही मिल रहा है । मैंने अपनी उम्र के ५८  साल पढ़ाई – लिखाई और नौकरी की आपा – धापी में खर्च कर दिए लेकिन आगे की जिंदगी के  दिन मैं अपनी जन्म धरती पर  ही व्यतीत करना चाहता हूॅं । मुझे अपनी जन्मधरती के प्रति अपने ऋण को भी तो चुकाना हैं ।   तुम कहोगी कि हमारे शहर स्थित घर का क्या होगा ?  जैसा कि तुम्हारी इच्छा है कि हम अपने शहर स्थित घर में रहेंगे जिसके लिए तुमने किराएदार को भी घर से निकलने की लिए कह रखा है लेकिन मैं जानता हूॅं  जिस तरह आज तक तुमने मेरा साथ दिया है  मेरा साथ आगे  भी दोगी ।  तुमने मुझे शिकायत का कोई मौका नहीं दिया है । मेरा साया बनकर तुम मेरा साथ देती आई हो । मैं अपनी जिंदगी अकेले नहीं काट सकता था । तुम्हारे साथ की मुझे जरूरत थी और इस बात को तुम बखूबी जानती थी और तुमने मेरा साथ दिया भी । सही मायने में जीवनसंगिनी का फर्ज  तो तुमने निभाया है । आज मैं तुमसे अपने मन की इतनी सारी बातें
इसलिए कहा पाया क्योंकि गाॅंव की ओर चलने की इच्छा तो मेरी थी लेकिन आज इसे पूरा  तुमने किया है । आज जब तुम अपने देवर से बात कर रही थी  मैंने तुम दोनों की बातें सुन ली थी । मुझे तो याद नहीं कि मैंने अपनी इच्छा आज से पहले तुम्हें कब बताई थी  लेकिन मेरे मन में दबी हुई बातें मेरी जीवनसंगिनी ने समझ लिया और उसने मेरे गाॅंव जाने का इंतजाम पहले से ही कर दिया । आज  मैंने शहर के घर में रहने वाले किराएदार से बात की तो उसने भी कहा कि तुमने उसे उस घर से निकलने के लिए मना कर दिया है और उससे कहा है कि हम लोग शहर नहीं बल्कि अपने  गाॅंव जा  रहे हैं । आज तो मेरा मन खुशी से झूम रहा है ।  गाॅंव जाने की उत्सुकता इतनी है कि अभी भी वहाॅं जाने में  १५  दिन बाकी है लेकिन मुझे लग रहा है कि मैं अभी गाॅंव के लिए निकल जाऊं । फौजी रमाकांत ने खुशी से अपनी पत्नी को गले लगाते हुए कहा ।
आज  २ साल बाद उमा  गाॅंव की मुखिया है और रमाकांत ने ही  अपने गाॅंव के विकास के लिए अपनी पत्नी को मुखिया बनवाया है ताकि अपनी जन्म धरती  का विकास कर सके । जब रामाकांत दो साल पूर्व  अपने गाॅंव आए थे और वहाॅं  रहने के उपरांत  उन्होंने देखा और समझा  था कि सरकार की तरफ से गाॅंव और गाॅंववासियों के लिए बहुत सारी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही  हैं लेकिन उसका सही इस्तेमाल ना तो गाॅंव में ही हो रहा है और ना ही गाॅंववासियों तक ही पहुॅंच रहा है बीच के बिचौलिए अपने फायदे के लिए सरकार की तरफ से दिए जाने वाले रखना को डकार जाते हैं और  उनके द्वारा दी  जाने वाली रकम  पहुॅंच ही नहीं पाती  है जहाॅं उसे पहुॅंचना चाहिए होता है । गाॅंव में होते  विकास की कछुआ चाल को खरगोश की चाल बनाने के लिए उमा और रमाकांत ने यह निश्चय किया कि दोनों में से कोई एक इस गाॉंव का मुखिया बनेगा और इस गाॅंव की तरक्की करने में अहम भूमिका निभाएगा । चूंकि  सरकार की तरफ से महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए महिला मुखिया हर गाॅंव में बनाए जाएं की मुहिम चलाई जा रही थी उसी मुहिम के तहत उमा और रमाकांत के अथक प्रयासों ने दोनों को सफलता दिलवाई और उमा मुखिया के पद पर आसीन हो आज अपने पति की जन्मधरती के विकास करने के प्रति दृढ़ संकल्प थी । 
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                                                 धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
” गुॅंजन कमल ” 💗💞💓
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