पण्डित रामप्रसाद खेत के किनारे पड़े हुए छप्पर में बहुत उदास बैठे हुए थे, बुढ़ापे में एक तरह का आघात किसी भी जीवित व्यक्ति को मृत्यु समान पीड़ा देता है।
उत्तर प्रदेश के मथुरा के पास के एक छोटे से गाँव के ७२ वर्षीय पण्डित रामप्रसाद से अब बिना सहारे के ज्यादा दूर तक चला भी नहीं जाता है, उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन पंडिताई करने में गुजारा था, पंडिताई कई पीढ़ियों से उनके परिवार की आजीविका का साधन है।
२ लड़कियों और १ लड़के के पिता रामप्रसाद ने अपनी पंडिताई के बल पर ही सबको अच्छे से पढ़ाया लिखाया और दोनों बेटियों की शादी अच्छे घर में कर दी।
उनके एकलौते बेटे राहुल के दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी, भगवान की कृपा से सब कुछ बहुत सुखमय ढंग से बीत रहा था, पता नहीं उनके घर पर किस की कुदृष्टि पड़ गयी, हँसता-खेलता परिवार दुःखों की गहरी खाई में जा गिरा।
पण्डित रामप्रसाद ने अपनी पंडिताई के दौरान सैकड़ों विवाह पढ़े, कथाएँ की, मृत्युभोज करवाये।
यद्यपि उन्हें पता था कि मृत्युभोज एक महापाप है, फ़िर भी इसे उनका लालच कहें या पारिवारिक जिम्मेदारी जिसके चलते वो किसी भी यजमान को बस ग्राहक के रुप में ही देखते थे।
कई बार लोगों ने कर्ज़ लेकर, जेवर गिरवीं रखकर, या कोई जानवर बेचकर मृत्युभोज का आयोजन कराया, अज्ञानता और अंधविश्वास का भरपूर फायदा उठाते थे पण्डित रामप्रसाद।
परिवार के एक सदस्य को खोने के आघात के साथ-साथ समूचे परिवार को कर्ज़ में डुबो देना, किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
एक बार तो एक विधवा स्त्री उनके पैरों से गिर कर रोई कि उसके पास तो अपने बच्चों को खाना खिलाने के लिए भी पैसे नहीं हैं फिर वो मृत्युभोज करने के लिए पैसे कहाँ से लाये, उसने उनसे ५ ब्राह्मण को आमंत्रित करने का आग्रह किया लेकिन पण्डित रामप्रसाद ने उसे सामाजिक वहिष्कार का डर दिखा कर, उसके जेवर बिचवा कर मृत्युभोज का आयोजन कराया।
किसी भी दावत में बैठ कर वो खुद को सम्मानित किया गया जैसा महसूस करते थे।
समय सदैव एक जैसा नहीं रहता और धीरे धीरे सामाजिक परिवर्तन होने शुरू हो गए और पण्डित रामप्रसाद की दुकान धीरे-धीरे चलनी कम हो गयी, अब कभी-कभार की उनको कोई बुलाने आता था।
अब अलग अलग जातियों में उनकी ही जाति के पण्डित आना शुरू हो गए थे, जो बहुत आधुनिकता के साथ पंडिताई के नाम पर दिखावा करने आते थे, माइक और छोटा सा लाउडस्पीकर हमेशा उनके थैले में ही रहता है।
ये नवनिर्मित पण्डित अपने गूगल ज्ञान से भोले भाले लोगों को अपने मोहपाश फँसा लेते हैं विशेषकर लड़कियां और युवा महिलाएं तो इनके आसान शिकार हैं।
आजकल ये आधुनिक पण्डित ऑनलाइन पंडिताई भी प्रदान कर रहे हैं, ये बाथरूम से भी कथा पाठ करा देते हैं।
सामाजिक भेड़ियों ने सिर्फ़ भेष बदला है अपना स्वभाव नहीं।
पण्डित रामप्रसाद के बेटे राहुल ने समय की नज़ाकत को समझते हुए, पुश्तैनी व्यवसाय की छोड़, दिल्ली कमाने के लिए जाना बेहतर समझा।
“क्या सोच रहे हो पण्डित जी, अब सोचने से क्या फ़ायदा, होनी को कौन टाल सकता है”
गांव के नाई हरि ने उनकी तंद्रा भंग की, पण्डित रामप्रसाद और नाई हरि का साथ वर्षों पुराना था, दोनों ने मिलकर ना जाने कितनी ही शादियां कराईं थीं, कितने ही यजमानों की जेब काटी थी।
हरि जोकि अब गाँव में अकेला ही रहता है, पत्नी १० साल पहले गुज़र गयी और उसके दोनों बेटे अपनी पत्नियों के साथ पैसा कमाने के लिए दिल्ली चले गए।
“पण्डित जी बुरा मत मानना, ये जो दुख हम दोनों भोग रहे हैं, ये वास्तविकता में हमारे ही कर्मों के फल हैं, हम दोनों ने ना जाने कितने लोगों के आंसुओं में भीगा हुआ अन्न खाया है, ये उसी का दण्ड है पण्डित जी”
“तू सही कह रहा है हरि, ये हमारे कर्मों का ही फल है, बुढ़ापे में जवान बेटे की अर्थी को देखना सबसे बड़ा दुःख है हरि”
“ब्राह्मण तो ज्ञान देने के लिए होता है, मैंने और मेरे जैसे ना जाने कितनों ने धर्म के नाम पर अंधविश्वास को व्यवसाय बना लिया”
कहते कहते पण्डित रामप्रसाद फफक पड़े।
५ दिन पहले उनके एकलौते बेटे राहुल की सड़क हादसे में दुखद मृत्यु हो गयी थी, पूरा परिवार दुख के असीम सागर में डूब चुका था।
“हरि मेरे पास मृत्युभोज कराने के लिए भी पैसे नहीं हैं, थोड़े-बहुत जो पैसे बैंक में जमा हैं, वो राहुल के बच्चों की पढ़ाई और बहू के भविष्य के काम आयेंगे”
“क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा”
पण्डित रामप्रसाद ने आँखों से आँसुओं को पोंछते हुए कहा।
“पण्डित एक बात बोलूँ, मेरे विचार से जब जागो तब सबेरा, अब आपकी जिम्मेदारी है की इस कुप्रथा के विरूद्ध खड़े हो जायें और इसका वहिष्कार कर, समाज को एक नई दिशा दें”
“लोग क्या कहेंगे, जिंदगी भर सबका खाया, जब खिलाने की बारी आई तो मृत्युभोज एक कुप्रथा हो गयी”
“पण्डित जी, लोग तो कभी चुप नहीं बैठेंगे, अब आप सोच लो, अपने परिवार को बचाना है, अपनी साख बचानी है”
हरि की बातें सुनकर बूढ़ी आँखों में दृढ़ता की चमक आ चुकी थी।
उन्होंने जो उम्रभर नहीं किया, आज जब बात अपने ऊपर बात आयी तो पण्डित रामप्रसाद समाज को ज्ञान देने निकल पड़े।
रचनाकार – अवनेश कुमार गोस्वामी
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