बनकर अपना कोई ,बेगाना आया था,
मुहब्बत की साज़िश कर हमे भरमाने आया था।।
हम भी बनकर कठपुतली उंसके इशारो पर नाचते रहे,
कहा जानते थे कि वो दिल बहलाने मेरे गलियों में आया था।।
खेल खेला कुछ यूं उसने की,हर कोई उसका बनता गया,
लाख खामियां थी उसमें लेकिन जमाना नजर अंदाज करता रहा।।
बड़ी चतुराई से वह जाल बुनता था,
मैं हूँ तेरा हमदर्द वह हर किसी के कहा करता था,।।
हम भी अपना समझकर उसे हर राज बताते रहे ,
ज़ख्म मिले थे जो अपनो से उसे सुनाते रहे,
लेकिन वो था शिकारी जो अपनी बातों से बहला देता है,
करके साज़िश वह फ़रेबी अपनी जीत पर जश्न मनाता रहा,,,।।
ठगे से रह गए हम उसकी फेवफ़ाई देखकर,
जो हर इल्ज़ाम पर कुसूरवार हमें ठहराता रहा।।
सुमेधा शर्व शुक्ला