मुसाफ़िर हूँ यारों,
एक मन्ज़िल की तलाश है,
जाने कब मिलेगी,
पर मिलेगी ये विश्वास है,
इसलिए चले जा रहा हूँ,
जब तक ताकत है,
सफल होना है जरूर,
इस बात की आस है।
ना रुकूँगा ना थकूंगा,
जब तक चलेगी सांस है,
मन में पाने की इच्छा है,
दिल में भरे जज़्बात है,
उम्मीद का दामन थामे रखूंगा
चाहे बाधाएँ आए,
हाथ में मेहनत की लकीरें हैं,
और आशीर्वाद है।
मुसाफ़िर हूँ यारों,
एक मन्ज़िल की तलाश है।
पूजा पीहू