दोहा नंद सुवन यशुदा ललन,गौ पालक गोपाल।
भैया है बलराम के,चमके चन्द्र सम भाल।
चौपाई
धेनु चरावत कृष्ण कन्हाई।
सखा संग बलदाऊ भाई।
बाबा नंद यशोदा मैया।
देवकी अरु वसुदेव के छईया।
सुंदर छवि तन श्याम स्वरूपा।
नमत जिन्हें सुर नर मुनि भूपा।
मोर पंख सिर शोभित जीके।
तन पीताम्बर लागत नीके।
लकुटी मुरली कर में सोहै।
रूप अनूप लखत मन मोहै।
वन में जाकर गायें चरावत।
काली धौरी नाम बुलावत।
हाथ फेर गैयन सहलावैबछड़ा आकर पास रंभावै।
अधरन पर धर कृष्ण कन्हाई।
राग रागिनी सकल बजाई।
बंशी बजी परम सुखदाई।
मोहे सचराचर समुदाई।
भूले तब बिरंच निज ग्याना।
स्वयं को सबसे बढ़कर माना।
एक दिवस अज धेनु चुराई।
ब्रम्ह लोक में रहे छुपाई।
कान्हा कपट सभी तब जाना।
ब्रम्हा के मन हुआ गुमाना।
तब निज माया नाथ दिखाई।
लीने बछड़े गाय बनाई।
नाम धेनुकासुर खल आवा।
ताहि मार निज धाम पठावा।
अका बकासुर कंस पठाये।
मर कर हरि धाम खल पाये।
सांझ समय गौधन संग आवें।
हरषि यशोदा कंठ लगावें ।
माखन मिश्री मात खिलावें ।
गोद विठाय हिये हरषावै।
धन्य धरा ब्रजभूमि पावन।
सकल अमंगल पाप नसावन।
बृजवासी अतिशय बड़भागी।
जिनकी लगन श्याम से लागी।
बृज रज जा मस्तक लग जावै।
तब उसकी बिगड़ी वन जावै ।
दाया नजर प्रभु कर दीजे।
मोहां नाथ शरन में लीजे।
दीन जान कीजे दया, दाता दीनदयाल।
सेवक शरन में आगया,हे बलराम कृपाल।
बलराम यादव, देवरा छतरपुर