मुफलिसी में था जब मैं , तुम्हें खयाल मेरा नहीं आया।
आज मैंने बनाया घर तो, मुझको तुमने गले लगाया।।
लेकिन नहीं मिटती दिल में, तस्वीर तुम्हारी कल की।
क्यों माना नहीं मुझे अपना, क्यों प्यार मुझे नहीं दिया।।
मुफलिसी में था जब मैं ————–।।
क्यों जन्म दिया था मुझको, जब करना यही था तुमको।
बाहर वालों से ज्यादा, दर्द तुमने दिया था मुझको।।
कल नहीं हंसाया मुझको, क्यों आज करीब बैठाया।
आज मैंने बनाया घर तो, मुझको तुमने गले लगाया।।
मुफलिसी में था जब मैं —————।।
करते हो अब तारीफ मेरी, अब साथ मेरे तुम रहते हो।
अपनी महफिल में सबसे, सच्चा दोस्त मुझे कहते हो।।
जब खाली थी जेब मेरी, क्यों नहीं मेरा साथ निभाया।
आज मैंने बनाया घर तो, मुझको तुमने गले लगाया।।
मुफलिसी में था जब मैं————।।
ठुकरा दिया था कल तो, तुमने मेरी मुहब्बत को।
पसंद नहीं था तुमको कल,देखना मेरी सूरत को।।
आज मेरी जरूरत क्यों है , क्यों मुझसे हाथ मिलाया।
आज मैंने बनाया घर तो, मुझको तुमने गले लगाया।।
मुफलिसी में था जब मैं————-।।
रचनाकार एवं लेखक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद