साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय

मुट्ठी गर्म करना।

कविता गीत

जब तक मुट्ठी गर्म न होती, कोई काम न बनता है।

भ्रष्टाचारी सभी, मस्त है, त्रस्त हो रही जनता है।

आफिस कोई बचा नहीं है, जहां न रिश्वत चलती है।

बिन रिश्वत के काम न, बनते,देख आत्मा जलती है।

झूठी आशा, के चक्कर में,आज पिस रही जनता है।

लाभ आदमी को कोई भी, नहीं सहज में मिलता है।

जब तक मुट्ठी गर्म न हो,तब तक पत्ता न हिलता है।

सी.एम पी.एम.का आवास न, पाती गरीब जनता है।

मुट्ठी गर्म किए, से, अनुचित काम सही,बन जाते है।

बिन रिश्वत के,बनें बनाए, काम बिगड़,सब जाते है।

सुविधा, शुल्क की, इस दल दल,अब हर कोई सनता है।

चाहे हो, सरपंच, विधायक, चाहे,संतरी, मंत्री हो।

विन रिश्वत के काम ना करते, चाहे, वो उपयंत्री हो।

केबल राम का नाम मुफ्त में पाती, जनता है।

जब तक मुट्ठी गर्म न होती, कोई काम न बनता है।

सारे भ्रष्टाचारी मस्त है, त्रस्त हो रही जनता है।

बलराम यादव देवरा छतरपुर

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