जिसे देख सुमन सी मैं खिलती
उर में प्रणय की लहर उठती
जब अंक में तुम भर लेते हो
मुझे तुम बसंत से लगते हो
मेरे नाम में ही अनुराग बसा
और तुम पर्याय मदन के हो
मेरे प्रेम की बातें करते हो
मुझे तुम बसंत से लगते हो
आई है रुत ये मादक सी
और मै हूँ घटा एक चंचल सी
जब मस्त पवन से बहते हो
मुझे तुम बसंत से लगते हो
हर पलछिन में छाई उमंग
मैं उड़ने लगी बनकर पतंग
जब तुम नभ बन छू लेते हो
मुझे तुम बसंत से लगते हो
✍🏻प्रीति ताम्रकार
जबलपुर (मप्र)