मगर इसी बहाने उनको भी, कुछ मालूम तो हुआ।
मुझको अफसोस नहीं कुछ भी, चाहे बदनाम मैं हुआ।।
मगर इसी बहाने——————–।।
उनको होश नहीं था कुछ , बहुत ही जोश में थे वो।
मुझको कोई दर्द नहीं इससे, मुझपे यह जख्म जो हुआ।।
मगर इसी बहाने ————————–।।
छुड़ाया उनका हमने हाथ, दीवाना उनका बनकर।
बिछुड़ गये वो साथी से, हमसे बस पाप यह हुआ।।
मगर इसी बहाने——————–।।
उनको मालूम नहीं थी, उनकी राहों की मंजिल।
रोक दी हमने उनकी किश्ती, तूफां कुछ मन्द तो हुआ।।
मगर इसी बहाने——————–।।
देख नहीं सकते थे उनको, गैरों के हाथों में लूटते।
जोड़ा हमने उनसे रिश्ता, उन्हें डर कुछ तो हुआ।।
मगर इसी बहाने———————।।
मेरा यह प्यार सच्चा है, कद्र बहुत करता हूँ उसकी।
मुझको कोई गम नहीं है, आबाद चाहे उससे नहीं हुआ।।
मगर इसी बहाने————————।।
साहित्यकार एवं शिक्षक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)