मुँह में तो है राम एवं बगल में है छूरी,
ऐसे लोगों से रखिये भैया कोसों दूरी।
यह देते धोखे संग खाते हलुआ पूड़ी,
बनकर मित्र करते अपनी इच्छा पूरी।
इनके मीठी बात में कभी नहीं आना,
ये कुछ सोच तय करें मित्र बन जाना।
संग में खाते पीते संग में आना जाना,
मौका मिलते ही मित्रों को डस जाना।
अंदर बाहर 1 नहीं इनके मन में घात,
कब ये रंग बदलें दिखाएंअपनी जात।
बड़ी-2 बातें करते हैं होती न औकात,
सुंदर नेक जगत में बहुत बुरी ये बात।
ऐसे लोगों में भला कैसे हो पाए भेद,
कभी-2 घर के ही मेंबर दे देते हैं भेद।
छली व कपटी मित्रों को न कोई खेद,
जिस थाली में खाएं करें उसी में छेद।
एक नहीं सौ बार सोचें तो बनाएं मित्र,
मुश्किल से ही मिलते हैं सच्चे मित्र।
मित्र वही जो मित्र वास्ते बनारहे मित्र,
कभी नहीं धोखा देते कोई सच्चे मित्र।
दंद फंद के कामों से कोसों रहना दूर,
बुद्धिजीवी है वही बने ना जानके सूर।
मुख में राम बगल में छूरी वाले से दूर,
यदि रहेंगे ऐसे तो पाएंगे सुख भर पूर।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.