शीर्षक :- मुँह में राम बगल में छुरी

"  आओ दोस्त इतने दिन कहाँ था बहुत दिनौ बाद आया है  दिखाई ही नही   दिया । ",  जगत ने अपने बचपन के  दोस्त मुरारी को देखकर उसको अपने गले लगा लिया।

मुरारी लाल  बोला," बस यहीं कहीं रहकर अपने मुशीबत के दिन काट रहा था। "

         "चलो देर आये दुरस्त आये अब तुम यहीं रहो और मेरे काम में हाथ बटाओ। पुरानी बातौ को भूल जाओ आखिर तुम मेरे बचपन के दोस्त हो।",  जगत राम बोला।

 "हाँ शायद यह ही ठीक रहेगा बहुत भाग लिया ?"  मुरारी चापलूसी करते हुए बोला।

   "मुरारी लाल अपने मन में सोचने लगा देखो कितना बडा़ आदमी बन रहा है।शायद ही धन्ना सेठ यही है मै इसकी चाकरी करूँगा। कितना दयालू बन रहा है कुछ दिन पहले की भूल गया स्कूल की फीस देने को पैसे नही थे। स्कूल से बेइज्जत करके निकाला गया था।

          मुरारी व जगत बचपन के दोस्त थे दोनौ साथ साथ एक ही क्लास में पढ़ते थे जगत राम के पिता की हालत कमजोर थी लेकिन वह बहुत ईमानदार थे किसी का लिया हुआ एक भी पैसा नहीं रखा था। 

        इसके विपरीत मुरारी लाल के पिता एक बिजनिस  मैन थे वह लोगौ से उधार लेकर भूल जाते थे।  दिखावे के लिए पूजा पाठ बहुत करते थे। यदि कोई मांगने उनके दरवाजे पर आजाता तब वह उसकी बेइज्जती करते हुए कहते थे कि राम जी भला करें मै तेरा रुपिया लेकर भाग नहीं गया हूँ।अगर  मै मरगया तो मेरा मुरारी तेरी पाई पाई चुकता कर देगा।

    मुरारी जगत राम की गरीबी की हसी उडा़ता था जब उसे स्कूल से निकाला गया था तब वह अपने दोस्तौ के साथ हसी उडाकर कहरहा था ," देखो हरिश्चन्द्र की औलाद जारही है। "

 वक्त कब बदल जाय किसी को नही मालूम यही मुरारी के साथ हुआ था ।एक दिन मुरारी के पिता की हार्ट अटैक से मौथ होगयी।वह मरते समय बहुत कर्जा मुरारी के सिर पर छोड़ गये जिसे चुकाते हुए उसका सब कुछ समाप्त होगया।

मुरारी ने बहुत महनत की परन्तु उसके बुरे दिन नही गये। वह अपने सभी रिश्तेदारौ के पास गया परन्तु कुछ नहीं हुआ। किसीने उसकी सहायता नही की।

  इसके बिपरीत जगत राम के घर धन की वर्षा होने लगी अब वह नगर सेठ बनगया। परन्तु जगत राम ने अपनी ईमानदारी नहीं छोडी़।आज मुरारी उसके पास आया । जगत राम उन सब बातौ को भूलकर उसकी सहायता करने को तैयार था।

     मुरारी मजबूरी बस जगत राम के घर रहने  तो लगा लेकिन   उससे उसकी यह बातें सहन नही होरही थी और वह जगत राम को नीचा दिखाने की सोचने लगा।

    जगत राम की पत्नी एक दिन नहाने से पहले अपना हीरे का हार बाहर रखकर नहाने चली गयी। उसी समय किसी काम से मुरारी आया और हीरे के हार को देखकर उसके मन में पाप आगया और उसने इधर उधर देखा कि कोई उसे देख तो नही रहा और वह हार चुराकर अपने कुर्ते की जेब में रखकर बापिस चलागया।

यह सब जगत राम की नौकरानी देख रही थी । उसने अपनी मालकिन को सब बात बतादी। यह बात उसने अपने पति को बताई।  जगत राम ने सीसी टीबी कैमरे मे यह देखा और देखकर उसे बहुत हैरानी हुई।

 जगतराम ने  मुरारी को अन्दर बुलाया और उससे हार की खोने की बात बताई। वह बोला सभी नौकरौ को बुलाकर पूछते है कि हार किसने लिया है। मुरारी को सीसी टीबी लगे होने का पता नहीं था।

 जब जगत राम ने उसे सीसी टीबी कैमरा खोलकर दिखाया तो मुरारी के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी और वह भय से काँपने लगा।

जगत राम बोला,” मुरारी यही हाल तेरे पिता का था कि मुँह में राम और बगल में छुरी यही तेरा हाल है तू भी अपने पिता के रास्ते पर ही चल रहा है। तुझे शर्म आनी चाहिए। मैने तो सोचा था कि शायद इतना सब होने के बाद तू बदल गया होगा।”

 मुरारी उसके पैरौ में गिरकर क्षमा माँगने लगा और एक मौका देने के लिए बोला। जगत ने उसे अपने गले लगा लिया और बोला," तू मेरा बचपन का दोस्त है मैने गरीबी का स्वाद बहुत नजदीक से चखा है यह कैसी होती है यही सोचकर मैने तुझे सहारा दिया था। चल मै यह सब भूलकर तुझे एक मौका और देता हूँ।

 इसके बाद मुरारी उसके सभी काम ईमानदारी से करने लगा उसने शिकायत का मोका नही दिया।

नरेश शर्मा ” पचौरी “
रश्मिरथी साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु रचना

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