सपना :- कुसुम…. जल्दी कर आरती का समय होने वाला हैं..। हमें मंदिर पहुंचना हैं..। 
कुसुम :- हां…. मेमसाब बस खीर पैक कर दूं..। 
सपना :- तू जल्दी से सब पैक करके बाहर ले आ.. तब तक मैं साहब से कहकर गाड़ी निकलवा देतीं हूँ..। 
अर्जुन…..अर्जुन…. कितना टाइम लगाते हैं आप… जल्दी किजिए…। आप जल्दी से गाड़ी निकालिए मैं… कुसुम के साथ सब सामान लेकर आतीं हूँ..। 
अर्जुन :- हां.. हां…. बस दो मिनट..। 
कुसुम :- मेमसाब… सब पैक कर दिया हैं..। मेमसाब वो मांजी… का समय हो गया हैं… आप बोलो तो उनको दे दूं थोड़ा..। 
सपना :- तेरा दिमाग खराब हो गया हैं क्या कुसुम..! माता जी को झूठा भोग लगांएंगे क्या..। एक दिन देर से खाएगी तो मर नहीं जाएगी.. और तुझे ज्यादा खुशामद करने की जरूरत नहीं हैं समझी..। चल जा सामान रखवा..। 
कुसुम बिना कुछ बोले गाड़ी में मंदिर में भोग लगाने का सारा सामान रखवाने लगी..। 
अर्जुन, कुसुम और सपना सभी शहर के बाहर स्थित दुर्गा मां के मंदिर में भोग लगाने निकल गए..। 
आज अष्टमी थी… सपना हर साल अष्टमी और नवमी को माता के मंदिर में आती थी.. और मंदिर में भोग लगाकर… पंडितों को भोज करवाती थीं..। तरह तरह के पकवान घर से बनाकर ही लाती थीं..। 
घर पर उन दोनों के अलावा अर्जुन की माँ राधा देवी भी रहतीं थीं..। लेकिन उनका घर में रहना , ना रहना बराबर था..। कोई भी उनकी छोटी सी छोटी जरूरत को पूरा नहीं करता था.. ना कभी समय पर खाना दिया जाता था.. ना दवाई..। कुसुम कभी अगर कुछ देने की कोशिश करें तो उसे डांट और फटकार मिलतीं थीं..।राधा देवी अगर कभी विरोध करतीं या कुछ बोलतीं तो अर्जुन उस पर हाथ भी उठाता था..। इस वजह से अब उम्र के इस पड़ाव में आकर मार खाने से बेहतर था खामोश रहना..। इसलिए वो अंदर ही अंदर टुट चुकी थीं..। 
बस खामोशी से अपने अंतिम दिन का इंतजार कर रहीं थीं..। पति की मौत के बाद राधा देवी से जबरन अर्जुन ने सारी प्रोप्रटी अपने नाम करवा दी थीं..। राधा देवी के पास वहाँ रहने के अलावा कोई चारा नहीं था..। 
कुसुम मंदिर में भोग की तैयारी करते करते मन ही मन सोच रहीं थी..। 
वाह रे माता… 
तेरे खेल निराले… 
घर में मां भूखी बैठी.. 
तुझ पर चढ़े भोग..। 
मुझे माफ़ करना मां लेकिन मैं ऐसे पाप की भागीदार बनने में बहुत मजबूर हूँ..। लेकिन सच कहूं तो मैं ऐसे दिखावे का बिलकुल समर्थन नहीं करतीं..। 
सच ही आज भी ना जाने अर्जुन और सपना जैसे कितने ऐसे लोग होंगे जो मिट्टी की मुरत पर छप्पन भोग चढ़ाते हैं और घर पर रह रहें बुजुर्गों का तिरस्कार करते हैं..। 
दान पुण्य करना गलत नहीं हैं.. पर सबसे पहला दान परिवार के लोगों की सेवा हैं..।
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