मै कोई मिट्टी की मूरत नहीं
न हीं तुम कोई कुम्हार हों।
जो मुझे अपने मनचाहें आकार कें
अनुरूप मुझें ढालोगें और मै ढल जाऊँगी
मै कोई मिट्टी की मूरत नहीं
मै जीती जागती इंसान हूँ
मै अशक्त नहीं; मै सशक्त हूँ
जो तुम्हारे द्वारा किए हुए जुल्मों सित्तम कों चुपचाप सह जाऊँगी।
मै कोई मिट्टी की मूरत नहीं
जो तुम्हारे तोड़ने से टूट जाऊँगी
आदर दोगे तो आदर पाओगे
वरना जैसे दुराचार करोगें
ब्याज समेत वापस लौटाऊंगी
हाथ उठाने का दुस्साहस किया तो
हाथ तोड़कर तुम्हारे हाथ में दे जाऊँगी
मै कोई मिट्टी की मूरत नहीं
जो तुम्हारें तोड़ने से टूट जाऊँगी
मै अपराजिता हूँ ,,,,,,,,,,,
मैं तुम्हें नाकों चने चबवा दूँगी,,,,,,,,,,
शिल्पा मोदी✍️✍️