आज के इस युग में हर तरफ माया का जंजाल है
किसी के घर है भरा खजाना तो कोई कंगाल है
रिश्ते-नाते उलझे हैं माया के जाल में
अपने ही फंस जाते हैं अपनों के चाल में
अब तो बस है सब का एक ही सपना धन दौलत से भरा रहे भंडार अपना
स्वार्थ बस है प्रेम अब शेष
बदल गए आचार -विचार
बदल गया है अब परिवेश
हर कोई उलझा है माया को सुलझाने में
आती है शर्म अब तो अपनों को अपनाने में
कहने को तो हर कोई खुशहाल है
पर नहीं आ रहा समझ उनको यह तो माया जाल है
अब भी वक्त है बचा लो खुद को इस मायाजाल से
करके ईश्वर की भक्ति छुटकारा पाओ काल से
सत्येंद्र पाण्डेय ‘शिल्प’
गोंडा उत्तरप्रदेश