नहीं करता अफसोस मैं,
क्योंकि मुझको विश्वास है,
मुजरिम सिर्फ मैं ही नहीं हूँ,
शर्म उनमें भी तो हो कुछ,
माफी मैं नहीं मांगता।
गुनाह सिर्फ मैंने ही नहीं छुपाया,
सच्चाई उन्होंने भी तो दबाई है,
पाने को प्रशंसा सभी दिलों से,
और जीतने को बाजी अपनी,
मैंने भी दबा दिये अपने पाप,
माफी मैं नहीं मांगता।
हाँ, उनकी पहुंच है वजीर तक,
और मैं हूँ एक अनजान चेहरा, 
जैसे कि वो सोते हैं फूलों पर,
ऐसे ही मैंने भी खरीद लिया,
एक बाग अपने आराम के लिए,
नहीं चुकाकर ऋण बैंक का,
इसमें अब मेरी क्या खता है,
माफी मैं नहीं मांगता।
उनको मालूम है हकीकत मेरी,
याद है उनको मेरे अहसान भी,
कैसे जी रहा हूँ मैं वतन में,
लेकिन नहीं बेचा है मैंने,
सच में अपना यह वतन,
जैसे कि उन्होंने बेचा है,
अपना देश और जमीर,
ऐसे में गुनाहगार मैं नहीं,
माफी मैं नहीं मांगता।
शिक्षक एवं साहित्यकार- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *