पुराने समय में गांव में बहुत कुएं हुआ करते थे। क्योंकि उस समय में पीने के पानी का एकमात्र साधन कूआं ही थे। सुबह से ही कुओं के आसपास चहल-पहल लगी रहती थी। औरतें सुबह तड़के उठ अपने परिवार के लिए पानी भर कर ले जाती थीं। वहां एकत्रित हो गीत गाते हुए पानी निकालती थीं। हर त्योहार पर कुएं की पूजा की जाती थी। उसके इर्द-गिर्द दिए जलाए जाते थे। कुएं को जल देवता का रूप माना जाता था। 
किन्तु जैसे – जैसे समय बीता कुओं का महत्व खत्म होने लगा। आज लगभग हर गांव में नल द्वारा पीने का पानी उपलब्ध है। खेतों में सिंचाई के लिए ट्यूबवेल हैं। अब लोगों को दूर चलकर कुएं तक जाने की आवश्यकता ही नहीं होती। 
ऐसे ही एक गांव था कृष्णा नगर।उस गांव में जंगलों के बीच में एक कुआं था। कहते हैं कि पहले पूरा गांव इस कूंए से पानी भरता था पर अब वहां कोई नहीं जाता। उसके आसपास घना जंगल उत्पन्न हो गया है। केवल यही नहीं एक और कहानी प्रचलित है उस कुएं के बारे में। समस्त गांव वालों का मानना है कि उस कुएं में भूत का निवास है। जो कोई भी उस कुएं के पास जाता है कुआं या तो उसे अपने अंदर निगल लेता है या फिर वह भूत उसे इतना पटकता है कि वह इंसान अधमरा हो जाता है। पर एक बात विचार योग्य है कि कुएं का भूत सिर्फ आदमियों को ही परेशान करता है, औरतों को नहीं।
एक रोज़ दूसरे गांव से कुछ साहूकार कृष्णा नगर  गांव में ज़मीनदार से मिलने जा रहे थे। वह जंगल के रास्ते जा रहे थे। अचानक उनकी बैलगाड़ी का पहिया निकल गया। गाड़ी चालक ने उन्हें कुछ देर उतर कर विश्राम करने को कहा। तब तक वह पहिया ठीक कर देगा।
साहूकार उतर कर पेड़ की छाया में बैठकर विश्राम करने लगे।
” इससे अच्छा तो हम मोटर गाड़ी से आ जाते। यूं बीच रास्ते उतर कर इंतज़ार तो नहीं करना पड़ता।” उनमें से एक साहूकार बोला।
” हां भाई ठीक कह रहे हो। जंगल भी तो कितना भयानक है। अरे! गाड़ी वाले भाई ज़रा जल्दी करो।” दूसरा साहूकार बोला।
” मुझे तो बहुत प्यास लगी है। वो देखो कुआं। मैं देखता हूं उसमें पानी हो तो।” तीसरे साहूकार ने कहा।
वह उठा और कूंए के पास पहुंचा। उसने कूंए में झांक कर देखा। और तेज़ आवाज़ में बोला,” अरे! यह तो सूखा पड़ा है। यह क्या हमारी प्यास बुझाएगा। बेकार है ये कुआं।”
उसके यह कहते ही तेज़ हवाएं चलने लगीं और देखते ही देखते वह हवाएं चक्रवात में बदल गई। इससे पहले कोई कुछ समझ पाता उस चक्रवात ने उस साहूकार को अपने लपेटे में ले लिया और वह साहूकार उसमें  घूमता – घूमता कूंए के अंदर समा गया।
कुछ पल बाद सब शांत हो गया। जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। बचे हुए दोनों साहूकार और गाड़ी चालक अपनी जान बचाकर वहां से भाग गए।
यह बात अन्य गांव में जंगल की आग की तरह फेल गई।अब कोई भी कृष्णा नगर  गांव में नहीं जाता था। इससे गांव के लोगों का काफी नुकसान हो रहा था। व्यापार ठप्प हो रहा था। सभी चिंतित थे। गांव के जमींदार ने फैसला लिया कि उस कुएं को तुड़वा कर उसको भर दिया जाए।
आदेश का पालन करने के लिए गांव के कुछ मज़दूर उसे तोड़ने पहुंचे। 
पहले तो सब डर रहे थे पर फिर हिम्मत कर उन्होंने एक साथ जैसे ही हथौड़ा मारा काले बादल छा गए और अचानक अंधेरा हो गया। तभी किसी के भयंकर रूप से चिल्लाने की आवाज़ आई, ” तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम मुझे तोड़ोगे। ठहरो! अब भुगतो इसका अंजाम।” 
तभी तेज़ हवाएं चलने लगीं। और कुएं में से एक चक्रवात उभरा। उस चक्रवात ने सभी को अपने लपेटे में ले लिया। सभी मजदूर चीखने और चिल्लाने लगे। पर उनकी चीखें कोई नहीं सुन पा रहा था। उस तूफ़ान ने सबको पहले तो खूब पटका और फिर सबको कूंए के अंदर फैंक दिया।
देर रात तक जब मज़दूर वापस नहीं लोटे तो उनके परिवार जन ज़मीनदार के पास पहुंचे। क्योंकि रात का समय था तो किसी ने भी वहां जाना उचित नहीं समझा
सुबह होते ही सब गांव वाले उस कुएं की तरफ चल पड़े।
वहां जाकर देखा तो दंग रह गए। उन्हें वहां एक भी मजदूर दिखाई नहीं दिया। सब ने पूरा जंगल छान मारा। पर वहां कोई नहीं था। सब समझ गए कि क्या हुआ होगा। उस कुए की भूत ने उन सब को अपने अंदर निगल लिया होगा। उस कुएं का इलाज ढूंढना असंभव दिखाई देने लगा। गांव वालों ने अब सब कुछ भगवान के ऊपर छोड़ दिया।
एक दिन गांव के जमींदार की बेटी शहर से लौट रही थी।
गांव जल्दी पहुंचने की खुशी में उसने जंगल का रास्ता ले लिया। जंगल के बीचो बीच जाकर उसकी गाड़ी का टायर पंचर हो गया। वह गाड़ी से उतरी और नया टायर लगाने लगी। तभी अचानक वहां एक चोर आ गया। उस चोर ने उसकी गर्दन पर चाकू रखा और उससे सारे गहने और पैसे देने को कहा। जमीदार की बेटी ने अपनी जान बचाने के लिए उसको सारे गहने और पैसे दे दिए। पर उस चोर की नियत खराब हो गई। उसने जमींदार की बेटी के साथ जोर जबरदस्ती करने की कोशिश करी। जमींदार की बेटी अपनी इज्जत बचाने के लिए भागने लगी। भागते भागते वह उस कुएं के पास आ गई।
” अब भाग कर कहां जाएगी। आगे मैं हूं और पीछे कुआं। अब तुझे कोई नहीं बचा सकता।” उस चोर ने उसको अपनी तरफ खींचते हुए बोला।
तभी अचानक वहां तेज़  बिजली कड़कने लगी। चारों तरफ अंधेरा छा गया। कुएं में से तेजी से चक्रवात निकला और उस चोर को अपने लपेटे में ले लिया। तभी कुएं में से एक डरावनी आवाज आई,”लड़की की इज्जत पर हाथ डालता है। मैं तुझे छोडूंगी नहीं। आज तेरा भी वही अंजाम होगा जो बाकी सब का हुआ है। तुम सब पापी हो और तुम्हें तुम्हारे किए की सज़ा जरूर मिलेगी।”
उस अनदेखी शक्ति ने उस चोर को बुरी तरह से पटकना शुरू कर दिया। चोर अपनी जिंदगी की भीख मांगने लगा। पर उस आत्मा रूपी शक्ति ने उसकी एक ना सुनी। वह उस चोर को अपने अंदर समाने ही वाली थी कि जमीदार की बेटी चिल्ला पड़ी,”रुक जाओ इसे मत मारो। इसे मार कर तुम्हें कुछ प्राप्त नहीं होगा। छोड़ दो इसे।”
“इसमें तुम्हारे गहने और पैसे लूट लिए और अब तुम्हारी इज्जत से खिलवाड़ करना चाहता है फिर भी तुम इसे छुड़वाना चाहती हो?” वह आत्मा हैरान होकर बोली।
” हां, क्योंकि इसे मारने से हम इसके अंदर छुपे हुए दानव को मार नहीं पाएंगे। इसे मार कर हम इसके परिवार जनों को भी दंड देंगे जो कि उचित नहीं है। हमें इसे सुधरने का एक मौका देना चाहिए।” ज़मीनदार की लड़की ने हाथ जोड़कर कुएं की आत्मा से विनती करी।
कुएं की आत्मा ने उसकी विनती पर उस चोर को छोड़ दिया। उस चोर ने हाथ जोड़कर जमींदार की बेटी को धन्यवाद किया और उसके गहने और पैसे लौटा दिए।
“बहन, मुझे माफ कर दो। मैं लालच में अंधा हो गया था और तुम्हारी खूबसूरती देख मेरे अंदर का  दानव जाग गया। मेरी इस हरकत के लिए मुझे क्षमा कर दो।” चोर ने हाथ जोड़कर जमींदार की बेटी से विनती करी।
चोर के वहां से जाने के बाद जमींदार की बेटी कुएं के पास आई और वहां बैठ गई। उसने कुछ सोचते हुए बोला,
“तुम एक अच्छी और पवित्र आत्मा लगती हो। फिर तुम क्यों लोगों को परेशान करती हो। क्यों तुम आदमियों के खून की प्यासी हो और क्यों तुम उनको अपने अंदर समा लेती हो। क्या कुछ ऐसा हुआ था तुम्हारे साथ जिसके लिए तुम समस्त गांव वालों को दोषी मानती हो?”
तभी कुएं के अंदर से एक सफेद प्रकाश सा निकला। देखते ही देखते वह सफेद प्रकाश एक स्त्री की आकृति में बदल गया। जमींदार की लड़की ने उसे हाथ जोड़कर नमन किया और उससे पूछा,”तुम कौन हो? क्या तुम अपनी व्यथा मुझे सुनाओगी?”
“तकरीबन 20- 25 वर्ष पूर्व मैं इसी गांव में रहती थी। मैं स्वभाव से बहुत चंचल थी। इसे मेरी खुशकिस्मती कहो या बदकिस्मती की वहां के जमीदार के लड़के को मुझसे प्यार हो गया। पर ऊंच-नीच ,जात-पात ,अमीर- गरीब की संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त इस गांव को यह प्यार मंजूर नहीं था। गांव वाले इस के विरुद्ध थे। उस समय तुम्हारे दादा जी वहां के जमीदार हुआ करते थे। उन्हें जब हमारे बारे में पता चला तो वह आग बबूला हो गए और इसे अपनी इज्जत का सवाल बना लिया। उन्होंने बहुत शातिर तरीके से अपने बेटे को शहर पढ़ने के लिए भेज दिया। और मेरे पीछे उनके पाले हुए गुंडे छोड़ दिए। मैं उनसे जान बचाती यहां जंगल में भाग कर आ गई। पर मैं उनसे अपनी जान बचा नहीं पाई। उन सब ने मुझे पकड़ लिया और पहले मेरी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया और फिर मुझे चाकू से गोदकर खत्म कर दिया। किसी को भी मेरे बारे में पता ना चले इसलिए उन्होंने मुझे इस कुएं में फेंक दिया। जमीदार का बेटा जब गांव वापस आया तो उसने मुझे ढूंढने की बहुत कोशिश की। उसे जब अपने पिता की करतूत के बारे में पता चला तो वह सहन नहीं कर पाया। और उसने अपनी जान दे दी। तब से मैं इस कुएं में आत्मा बन भटक रही हूं। जब तक मैं इस गांव से और इस गांव के सभी मर्दों से बदला ना ले लूं तब तक मेरी आत्मा को संतुष्टि नहीं मिलेगी।” कुएं की आत्मा ने रोते हुए अपनी सारी व्यथा जमींदार की लड़की को सुना डाली।
कुछ देर के लिए सब कुछ एकदम शांत हो गया। जमींदार की लड़की चुपचाप कुछ सोचती रही। उसे अपने दादाजी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह अपने दादा जी को बहुत मानती थी पर आज उसका सर शर्म से झुक गया। उसने अपने हाथ जोड़े और बोली,”मैं मानती हूं कि मेरे दादा जी ने आपके साथ बहुत बुरा किया। आपके गायब होने के बाद आपके परिवार पर क्या विपदा आई होगी यह भी मैं भली-भांति समझ सकती हूं। मुझे आज तक नहीं पता था कि मेरे पिताजी के कोई भाई भी थे। मुझे यह भी नहीं पता कि मेरे पिताजी इस विषय में कुछ जानते भी थे कि नहीं।”
जमींदार की लड़की को बीच में टोकते हुए वह आत्मा बोली,”नहीं तुम्हारे पिताजी इस विषय में कुछ नहीं जानते और ना ही इस गांव को इस विषय में कुछ भी पता है।”
“फिर तुम क्यों गांव वालों को उस काम की सजा दे रही हो जो उन्होंने किया ही नहीं? तुम्हें नहीं लगता कि यह अनुचित है।”जमींदार की लड़की ने आत्मा से बोला।
“हां, पर मुझे मर्दों से नफरत हो गई है। “हां, पर मुझे मर्दों से नफरत हो गई है। मर्दों ने हमारे समाज को खराब कर दिया है। इस गांव के मर्द औरतों को अपने पैर की जूती समझते हैं। जब तक इन मर्दों की सोच नहीं बदलेगी मैं इन्हें माफ नहीं करूंगी।”आत्मा ने जमींदार की लड़की से कहा।
जमींदार की लड़की ने आत्मा के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा,”मुझे लगता है कि आपको गांव के मर्दों को माफ कर देना चाहिए और उन्हें सुधारने का और अपनी मानसिकता को बदलने का एक मौका देना चाहिए। अब हमारा गांव और यहां के लोग पहले जैसी संकीर्ण मानसिकता के शिकार नहीं है। धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करती हूं कि आप उन्हें माफ कर दें और अपने आप को मुक्त कर दें।”
कुएं की आत्मा ने कुछ नहीं बोला और वह चुपचाप कुएं के अंदर वापस चली गई। जमींदार की लड़की ने गांव पहुंचकर सबको पंचायत में इकट्ठा किया। उसने सबको सब कुछ बताया जो उसके साथ हुआ और जो कुएं की आत्मा के साथ हुआ। जमींदार यह सब सुनकर हैरान था क्योंकि उसे इस घटना के बारे में कभी किसी ने कुछ नहीं बताया था। उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने अपनी बेटी से पूछा,”अब तुम बताओ बिटिया कि हमें क्या करना चाहिए कैसे हम उस कुएं की आत्मा को शांत करें।”
“मेरे पास एक उपाय है। आप सब लोग कल मेरे साथ वहां चलेंगे और जैसा मैं कहूंगी वैसा करेंगे।” सब लोगों ने उसकी बात मान ली।
अगले दिन जंगल का नजारा देखने वाला था। जंगल हज़ारों दीयों की रोशनी से जगमगा रहा था। जंगल के हर व्यक्ति ने चाहे वह पुरुष हो या महिला सब ने अपने हाथों में दिए पकड़ रखे थे। सब लोग धीरे-धीरे कूंए तक पहुंचे।
वहां पहुंचकर सब ने उन दीयों को कुएं की मुंडेर और कुएं के आसपास रख दिया। और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। जमींदार की बेटी आगे आई और उसने हाथ जोड़कर प्रार्थना करी,”हे पवित्र आत्मा हम सबको क्षमा कर दें।”
तभी वहां अचानक से मौसम बदल गया और एक तेज रोशनी हुई। कुछ ही पलों में उनके सामने कुएं की आत्मा प्रकट हुई। उसे देख जमींदार आगे बढ़ा और घुटनों के बल बैठ कर हाथ जोड़कर बोला,”मुझे और मेरे परिवार को क्षमा कर दो। आपके साथ हुए अन्याय के बारे में मुझे कुछ भी पता नहीं था और गांव वाले भी इस बात से अनजान थे। हम सबको क्षमा कर दो और अपने इस शरीर से मुक्त हो जाओ।”
कुएं की आत्मा एक टक सबको देखती रही और फिर अचानक एक बहुत तेज रोशनी प्रकट हुई। और वह आत्मा उस  रोशनी में समा गई।
उस दिन के बाद से कृष्णा नगर गांव में बहुत खुशहाली आ गई। अब सब लोग हर त्यौहार पर उस कुएं के पास जाकर उसे सजाते और दीपक जलाते थे।
🙏
आस्था सिंघल
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