माँ तेरी ममता अनमोल,
माँ तेरी छाँव का सुःख अनमोल,
माँ मेरा वर्चस्व तू,
माँ मेरा सर्वस्व तू,तू ही जननी
तू ही शक्ति स्वरूप माँ,
रेगिस्तान की तिलमिलाती धूप में,
तू बारिश की ठंडी फुहार माँ,
नदी सी शीतलता भी तुझमें,
मंद मंद पवन की ठंडक भी तू,
हर स्वार्थ से विमुख,
तू जीवन का संचार माँ,
तेरी एक मुस्कुराहट में,
जीवन की हर मुश्किल का हल है माँ,
तेरी हर सीख जीवन के पायदान का साखी है
सुःख दुःख से परिचय करवाती,
ऐसी अद्भुत अनमोल शक्ति है माँ,
खुद गीले में सोकर
बच्चे को सूखे में सुलाती है माँ,
भूखी रह स्वयं, बच्चों के पालन पोषण में कसर ना छोड़े,
आँचल में जिसके स्वर्ग की अनुभूति,
माँ होती है सच्ची सहेली,
हर दर्द को सहकर जो माँ बनती है,
ऐसी जगत जननी स्वरुपा होती है माँ,
स्वंय में परिपूर्ण स्वरुप होती है माँ 
जिसके जैसा कोई और नहीं वो होती है माँ…
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर उत्तराखंड
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