धरती का स्वर्ग चलें खोजें,देखें कहाँ मिलता है।
सही तलाशेंगे तो पाएंगे,मानेंगे कहाँ दिखता है।
हरीभरी वादियां वन उपवन झरने पहाड़ दिखें।
बर्फीली श्वेत चोटी चट्टानें एवरेस्ट पहाड़ दिखें।
शिकारें ये डल झील में फूलों की घाटी कश्मीर।
स्वर्ग बसा है लगे धरती की जन्नत है ये कश्मीर।
स्वर्गलोक तो ऊपर है,जन्नत भी है उसका नाम।
जहाँ देवता वास हैं करते,इंद्रदेव राजा का नाम।
नृत्य अफशराएँ करती हैं,शीतल मंद बहे बयार।
खुशबू वाला धुँआ है उठता,लगता है ये दरबार।
धरती का स्वर्ग वसा है,माता-पिता के चरणों में।
सेवा से ही मिलता है,जो करते झुकते चरणों में।
धरती के 5भगवान डॉ.किसान गुरु पिता-माता।
इनमें सबसे ऊँचा दर्जा,रखते हैं गुरु पिता-माता।
पाँच से निकले तीन पर आए,तीन से आये एक।
वह एक सर्वश्रेष्ठ है जग में, वो माँ है केवल नेक।
माँ के चरणों में ही जन्नत है,माँ के चरण हैं स्वर्ग।
नौ माह गर्भ में रखती अपने,क्या क्या झेले नर्क।
तन के खून से पाले अपने,गर्भकाल में बच्चे को।
पालन पोषण करती है माँ, दूध पिलाए बच्चे को।
बच्चे को जब भूख लगे तो,ये बच्चा कैसे रोता है।
दूध नहीं जो छाती से पीता,वो तो अमृत होता है।
अमृत कौन पिलाता है ये, केवल माँ ही पिलाती।
खुद भूखी रह जाती है,पर बच्चे को है खिलाती।
सहती है हर दुःख दर्द,कष्ट गर्मी और जाड़ा यह।
सो जातीहै गीले में ही,बच्चे को रखे सूखे में वह।
इस माँ में इतना त्याग भरा,वो चरण ही जन्नत है।
धरती पे स्वर्ग उसी पग में,सेवा से मिले जन्नत है।
मेरा निजी मानना है,माता-पिता के पग में स्वर्ग।
इन्हें कष्ट कभी न दें,इनके सेवा से धरती पे स्वर्ग।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.