” मां ” शब्द में पूरी कायनात है समाती,
मां जो हजारों दर्द सह कर
देती वो बच्चे को जन्म
सुन, उसकी किलकारियों की आवाज
हो जाता पुलकित उसका मन…
नम होती आंखें जब, हाथों में उसे लेती
खुशी से तृप्त हो जाता उसका मन…
” मां ” जो चलना है सिखाती,
अच्छे बुरे की समझ
शिष्टाचार ,संस्कार ,सभ्यता है सिखाती …
जिंदगी के सफर में आती जो मुश्किलें,
थाम कर हाथ, हौसले को है बढ़ाती…
” मां ” जो होता उसका मन निश्चल
प्रेम से भरा, आशीष देने सदा
बाहें है फैलाती…
हम तो एक शब्द हैं,
वो तो है पूरी भाषा
हम कुंठित हैं, वो होती है
एक प्यारी सी अभिलाषा…
शब्द नहीं ऐसे , जो मां की
महिमा कर पाए, क्योंकि
” मां ” शब्द में पूरी कायनात है समाए ..
मंजू रात्रे ( कर्नाटक )