लिखूं जब भी कुछ,ये कलम मेहरबां मुझपर हो जाए,
समेट कर रख दूं अल्फाज सारे,लफ्ज दिल के सारे बयां हो जाए!
बिन बोले समझ लेना मेरी मां,तू तो दिल की बात सुनने वाली है,
मै हूं तेरी शरण मे मैया,तू मुरादे पूरी करने वाली है!
छोटा सा घर हो मेरा उसपे हो आंचल तेरा,तो धन्य जीवन मेरा हो जाए!
तेरी करूणा का ना कोई पार है,सारे जग मे तेरा विस्तार है,
छोटी सी है अर्जी मेरी,पर है इसमे भी मर्जी तेरी,करना मुझको भव से पार है!
ना परवाह हो दिन रात की,ना हो परवाह परिवार की,
बस जुबां पर नाम तेरा हर बार हो जाए!
लिखूं जब भी कुछ ये कलम मेहरबां मुझपर हो जाए!
                                       श्वेता अरोडा
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