” अरे सलमा आंटी ! बड़े दिनों बाद ! दो साल हो गए, कहीं ओर से खरीदी कर रहे थे क्या माल की ? दिखे ही नहीं ! कैसे हो ! “

” अच्छी हूं बेटा ! बस दुआ है आप लोगों की और अल्लाह ताला की मेहरबानी है। दो साल तो दूकान बेटा चला रहा था।

सलमा आंटी की शादी इरफान अंकल के साथ २५ साल पहले हुई थी आज उनकी शादी की सालगिरह भी थी । अगर इरफान अंकल जिंदा होते तो उनकी शादी की सिल्वर जुबली मना रहे होते। अंकल आंटी से बेइंतहा प्यार करते थे ।

शादी के साल भर बाद ही इरफान अंकल का इंतकाल हो गया था । एक तरफ आंटी ने बेटे को जन्म दिया तो दूसरी ओर अंकल के एक्सीडेंट की खबर मिली। ससुराल वालों ने आंटी को मनहूस कहकर बेटे के साथ ही घर से निकाल बाहर किया। एड़ी चोटी का जोर लगाया आंटी ने मगर अंकल की दूकान को बिकने नहीं दिया। पड़ोसियों की मदद से घर भी मिल गया। दूकान में भी बरकत रही ।

आंटी ने बेटे का नाम अंकल के और खुद के नाम को मिलाकर’ माहिर’ रखा था। माहिर को आंटी ने खूब पढ़ाया पर माहिर का मन तो न पढ़ाई में लगता था ना हीं दूकान पर । आंटी ने जोर देना छोड़ दिया ।

जब बेटा शादी लायक हुआ तो पहचान में ही अच्छी सी लड़की, माहिर की पसंद की देख कर बात पक्की कर ली। शादी भी हो गई कहीं कोई दिक्कत नहीं आई। मगर तकलीफ़ यह रही कि बहू को घर के काम में कोई रस ही नहीं था। सज संवर कर रहना, हरदम बाहर घूमने जाना, पड़ोसियों से गप्पे लड़ाने में ही उसका मन लगता था ।

अब आंटी के सब्र का बांध जैसे टूट चुका था, ” या अल्लाह ये कैसा इम्तिहान है मेरा मैंने सोचा था शादी के बाद बेटा सुधर जाएगा मगर ये तो बहू के आने से और बिगड़ गया । “

बहुत विचार करने के बाद आंटी को लगा कि अब बेटे बहू को बेदखल करने के अलावा कोई रास्ता नहीं। मगर तकदीर में कुछ और ही लिखा था बेटा बहू तो गए लेकिन हिस्से में दूकान ले गए। अब इरफान की यादों के सहारे और अल्लाह का शुक्र कर दिन काट रही थी आंटी ।

कुछ समय बाद ही माहिर दूकान बंद कर घर बैठ गया । दूकान घाटे में चली गई थी और उसकी बर्बादी देख कर उसकी बीवी भी तंग आकर मायके चली गई । बेतहाशा परेशान हो वह शराब के अड्डों पर जा भीख मांगे पैसों से शराब पीने लगा और सड़क पर ही बेहोश हो गिर पड़ता ।

पड़ोसियों से जब आंटी को पता चला तो इरफान को याद कर वह अपने बेटे को वापिस लाने चल दी। माहिर की आंखें पथरा गई थी वो शर्मसार था कुछेक पल तो मुंह लटकाकर एक कोने में पड़ा रहा पर जैसे ही मां ने सिर पर हाथ फेरा वो किसी बच्चे की तरह फुट फुट कर रोने लगा । मां ने उसे गले से लगा लिया, ” मैं तेरी अम्मी हूं पगले, मैं बेहतर जानती हूं कि तेरे लिए क्या सही है क्या ग़लत। अब भी देर नहीं हुई बच्चे चल घर चल हम सब पहले जैसा कर लेंगे। “

आंटी और माहिर ने फिर से नई शुरूआत की माहिर की बीवी भी अपनी गलती स्वीकार कर लेती है। मां तो मां है मां ने माफ कर दिया। अब सब साथ रहने लगे मगर जहां दुकान की बात आती माहिर मां को आगे करता और कहता, ” अम्मी, आप बेहतर जानती हो !”

किसी ने ठीक ही कहा है’ देर आए दुरुस्त आए’। कभी तो सवेरा जरूरी है। दोस्तों अगर आपको कहानी पसंद आई हो तो लाईक करें और मेरे साथ जुड़े रहने के लिए मुझे फोलो करना ना भूलें। अपने अभिप्राय अवश्य प्रस्तुत करें ।

धन्यवाद जी

आपकी अपनी

( Deep )

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