ओ माँ मुझे जोड़ों की भूख लगा है,
जरा जल्दी से भोजन लाओ ना…
कौआ,तितर,बगरा बनाकर,
अपने हाथों से खिलाओ ना…
ओ माँ मुझे जोड़ों……
ना आदत है खुद से खाने की,
थोड़ा प्यार से फिर खिलाओ ना…
सोने जाऊँ जब मैं बिस्तर पर,
मीठा-मीठा गीत सुनाओ ना…
ओ माँ मुझे जोड़ों……
तुम खाती हो इतने क्यों लेट से,
सबको खाना खिलाने के बाद…
सुबह भी ऊठती हो सबसे पहले,
आती रहती हमेशा तुम्हारी याद…
ओ माँ मुझे जोड़ों……
सुबह का नास्ता कैसे बनाती हो?
इतना सारा काम अकेले करती हो…
आज बताओ मैं भी काम करुँगा,
ना बैठकर दिनभर आराम करुँगा…
ओ माँ मुझे जोड़ों……
जरा मुझे बड़ा तो होने दो,
मैं अपने हाथों से तुम्हें खिलाऊँगा,
जो चलती है गाड़ी आसमान में…
उसपर बैठकर शैर कराऊँगा…
ओ माँ मुझे जोड़ों……
मैं छोटा सा ही तो लड़का हूँ,
तुम मेरे लिए कितना कष्ट उठाती हो…
करुँगा तुम्हारी नाम भी रौशन,
तुम क्यों घबराती हो…
ओ माँ मुझे जोड़ों……
जरा देख इधर मेरे तरफ़ “माँ”,
तू क्यों रोये जा रही है…
ना बेटा मैं नहीं रोती हूँ,
ये तो खुशी की आँसू निकले जा रही है…
ओ माँ मुझे जोड़ों……
बेटा! तेरे बात में सच्चाई हैं,
इसिलिए खुशी की आँसू रुकी नहीं…
मेरे रास्ते बहुत सी कठीनाई आयीं,
लेकिन कभी हार मानी नहीं…
ओ माँ मुझे जोड़ों……
तू तो मेरा लाल है,
तू अपना नाम बनाते जाना…
मेरा आशिर्वाद सदा तुम्हारे साथ रहेगी,
अपना कर्म सजाते जाना…
ओ माँ मुझे जोड़ों……
  ✍विकास कुमार लाभ
          मधुबनी(बिहार)
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