आंखों को देखा है मैंने उसके

सैलाबों के ढेर सा समुंदर लिए घूमती है

माथे पर लाल बिंदी शून्य सी

हर दर्द को अपने अंदर लिए घूमती है

स्नेह करुणा से भरी रहती है माँ मेरी

दृढ़ता का अद्भुत कलंदर लिए घूमती है

ममता की शक्ति ऐसी कि जहां झुका दे

माँ मेरी प्रेम निरन्तर लिए घूमती है

श्रद्धा की अलौकिक देवी का स्वरूप है

स्वाभिमान को आँचल में लेकर घूमती है

कोई दर्द हो अगर जेहन में मेरे 

बिन कहे जान लेने का हुनर लिए घूमती है

माँ दिव्यता का दुर्लभ आभूषण है

ममत्व को हृदय में धारण करके घूमती है।

नेहा यादव

स्वरचित रचना।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

<p><img class="aligncenter wp-image-5046" src="https://rashmirathi.in/wp-content/uploads/2024/04/20240407_145205-150x150.png" alt="" width="107" height="107" /></p>