आँखों से सिर्फ़ आँसू ही नहीं, पूरी नदियाँ गुजरती है,
जब कहीं किसी रोज ,किसी की माँ गुजरती है l
कलेजा निकल पड़ता है, साँसे ठहर पड़ती है,
माँ की यादों पर जब , गहरी नज़र पड़ती है l
माँ का जाना दुख देता है, मानो मिटा देता सब कुछ ही,
एक धक्का सा लगता है, जब ये कानों में खबर पड़ती है l
माँ ने ही दिया सब, कहाँ चुका पाए हम उतना,
हमारे किए में तो सदा ही, एक कसर पड़ती है ।
आँखों से सिर्फ़ आँसू ही नहीं, पूरी नदियाँ गुजरती है,
जब कहीं किसी रोज ,किसी की माँ गुजरती है ।
दर्द इतना बढता है, मार ही दे समझो,
मानो समंदर में, लहर पर लहर पड़ती है ।
माँ का दरजा, कुछ ऐसा है जीवन में हमारे,
हमारे हँसने से हँसना ,रोने से बिखर पड़ती है ।
मुश्किल तो है समझाना, की माँ अब नहीं यहाँ,
माँ के होने से तो, जिंदगियाँ सँवर पड़ती है ।
आँखों से सिर्फ़ आँसू ही नहीं, पूरी नदियाँ गुजरती है,
जब कहीं किसी रोज ,किसी की माँ गुजरती है ।
लेखक – गोवर्धन कुमार
हुसंगसर,बीकानेर(राजस्थान)