..अलाउद्दीन खिलजी स्वयं एक गुलाम था; जो कई कौशलों से युक्त था, परिणाम यह हुआ कि उसे ऊँचे दामों में खरीदा गया। ‘मामलूक वंश’ को गुलामों का वंश कहा गया, इसमें ग़ुलाम थे; गुलामों की कौशल धारण क्षमता के साथ ही उनकी बोलियाँ लगती या यूँ कहा जाए…गुलाम अपने को कौशल बनाते और अपना मूल्य बढ़ाते….मलिक कफूर जिसे अपनी कीमत ‘हजार दीनारी’ के नाम से ही जाना गया….  

“अरे ओ शिवानी….तुझे सिलाई मशीन सीखने नहीं जाना क्या आज….दिनभर मोबाइल ही चलाएगी क्या ?”   “हाँ माँ जाऊँगी अभी एक घण्टा बाकी है और हिस्ट्री में दासों पर असाइनमेंट मिला है उसे लिखना भी हैं..तो  यू ट्यूब पर सर की क्लास देख रही हूँ।”     शिवानी मोबाइल की आवाज़ बढ़ा देती है और ईयर फोन लगा लेती है-….डायस्पोरा….ब्रिटिश इंडिया में …पूर्वी भारत से…भारतीय मजदूरों का ज़खीरा.… मॉरीशस, त्रिनिडाड, टोबैगो, गुआना जैसे टापू एवं कनाडा इत्यादि देशों में जहाजों के माध्यम से ले जाये जाते, जिन्हें ‘गिरमिटिया मजदूर’ कहा गया। वहीं अफ्रीका ‘हब्शी’ दासों का व्यापार भी चरम पर था….. दास अपने देश गांवों से बिछड़ने पर रोते जहाँ उन्होंने अपना बचपन जिया…कुछ दास तो 15 वर्ष से भी कम आयु के होते। वे रोते बिलखते पानी के जहाजों में भरे जाते…   “”””” ज़ोमैको…ऑर्डर ऑन योर होम .. पिज़्ज़ा डेलिसिस ….”””” “ओफ्फो कितनी ऐड्स आती है बार-बार….” (ऐड से तंग आकर शिवानी जम्हाई लेके गुस्से में कहती है)      ” अरे शिवानी देख मैं कबसे अपने शादी के इस एलबम को ही ढूंढ़ रही थी देख तो इसमें मैं कितनी पतली थी…आज मिला ये।” शिवानी ने माँ के हाथ से एलबम लिया और वीडियो पुश करके इयरफोन हटा के एलबम देखने लगी। शिवानी आखिरी की फोटोज़ को अधिक देर तक देखती रही।माँ ने शिवानी की एकटक निगाह में झांककर कहा –

” आह! ये तो मेरी विदाई के समय की फोटो है। मैं बहुत रो रही थी …जोर का ठहाका ..हाँ हाँ हाँ … देखों तो फ़ोटो में मैं रो रही हूँ और तेरे नाना और मामा मुझे डोली में बैठा रहे हैं।”   “आपके समय में डोलियों का रिवाज़ तब तक बना हुआ था माँ?”   “अरे न-न बस रश्म पूरी करनी थी; बाद में जीप से ही बिदा  हुई थी। भला मेरे लिए पानी का जहाज थोड़े ही आता ही ही ही ही….”     पानी के जहाज की बात सुनते ही शिवानी को लगा जैसे माँ यू.ट्यूब के वीडियों पर तंज कश रही हों।”””””डिंगर्रर्रर्ररर डिंगर्रर्रर्ररर डिंगर्रर्रर्ररर डिंगर्रर्रर्ररर…  “अरे शिवानी देख तो कौन आया है। दरवाज़ा खोल आ”  “जाती हूँ माँ”  शिवानी दरबाजा खोलती है। पापा कानों में फोन लगाएं किसी से बात करते हुए घर में प्रवेश करते हैं…   “…..अरे ये तो खुशी की बात है ही..आखिर दीप्ति ने बी.ए किया है और रोटी भी गोल बनाती है। उसने ब्यूटीपार्लर का कोर्स भी किया है..तब क्यों आप भला दीप्ति की शादी में पूरा सामान देंगे….हाँ बिल्कुल भी नहीं सिर्फ एक मोटरसाइकिल और टी.वी और थोड़ा घरेलू सामान बस …हा इतना ठीक है…ये भी बात सही है आपकी; अगर दीप्ति सिलाई का कोर्स भी कर लेती तो सिर्फ मोटरसाइकिल में ही सिर्फ काम चल सकता था।…ठीक – ठीक अरे आप चिंता मत कीजिये दीप्ति के मामा और मामी , शिवानी और संजय सभी शादी में आएंगे..जी अच्छा तब काटता हूँ फोन..ख्याल रखिये”  ” पापा दीप्ति दीदी की शादी फिक्स हो गयी क्या?”  ” हाँ तुमारे फूफा जी का फोन था…और हां आज  बी.एड के फॉर्म निकल आये है। तुम आज ही डाल देना। जब सिलाई सीखने जाओ तो वहीं से फॉर्म भरते आना।”  “ठीक पापा।”शिवानी अपने कमरे में जाती है और यू ट्यूब पर पुश किया वीडियों पुनः स्टार्ट करती है — “….मेगस्थनीज ने भारत में दास प्रथा को नकारा है। …  शाम के 5 बज गए थे। शिवानी को रात होने का भय था तब उसने वीडियों बन्द करके ‘सिलाई सेंटर’ पर जाना उचित समझा।शिवानी “सिलाई सेंटर” पर बैठी सोच रही है और ‘सिलाई सेंटर’ के सामने एक “मीट शॉप” की ओर गौर से देख रही है; जहाँ कुछ बकरे बंधे है, जो भूँसा खा रहे हैं; चने भी पास में रखे है जिससे कि बकरों के मांस का बजन बड़े और उसकी कीमत दुगनी हो जाये…वहीं एक हलाल बकरा टँगा है पूरा का पूरा मांस का एक लोथड़ा सा…ग्राहकों की भीड़ थी। शिवानी साफ़-साफ़ देख पा रही थी सभी ग्राहक रुपयों से मांस खरीद रहे थे न कि मांस फ्री में लेकर उल्टा  “मीट शॉप” वाले से रुपये मांग रहे थे………..    

          – ‘रणदीप पुष्पवीर’                               

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Gouri tiwari

By Gouri tiwari

I am student as well as a writer

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