चेतनता की रात – महाशिवरात्रि है आई, 
शिव सा ओज,माँ सी स्निग्धता है लाई।
चतुर्दिक गूंजित ध्वनि,मन में है समाई।
लगे जयकारे महाकाल शिव शम्भो वाले,
हर हर महादेव जो बोले,उसका बेड़ा पार हो जाए। 
भक्तों के श्री मुख से स्वर भजन के निकले,
पल-पल भोले का जयकारा भक्ति में सब डूबे 
शिव भक्तों का लग रहा मेला,
बाजत ढोल मंजीरा,गीत चले अलबेला। 
जाप,भजन कर्ण प्रिय मधुर रस घोले, 
भूख-प्यास कछु वेग न आवे, 
आठो पहर चले शिव जगराता।
आबाल वृद्ध सब मस्त हुए हैं 
न कोई चिंता न फिक्र, अलमस्त हुए हैं। 
जागो-जागो उठो सब,कर्म-पथ पर चलो सब। 
पी लो सब जागरण का पीयूष- प्याला।
माँ संग लेकर आए ,शिव शंकर हैं आला। 
बजावें डमरू,रचें नृत्य शाला।
भय का नाश हो निर्भीकता का वास हो।
मुश्किलों से त्राण हो,मुक्त जीवन प्राण हो।
रचयिता –
सुषमा श्रीवास्तव 
मौलिक कृति
उत्तराखंड।
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