महामना मदनमोहन मालवीय
कविता
आल्हा छंद
मदन मोहन जी महामना को जानें पूरा भारत देश।
बी एच यू की कर स्थापना जिनने कीना काम बिशेष ।
दिसम्बर माह 1861 में जब घड़ी सुहानी आई।
कुमारी देवी बैजनाथ जी घर में बाजी नवल बधाई।
थन धन प्रयागराज की धरती, जहां पर है,संगम स्थान।
पहली शिक्षा प्रयागराज से दूजी कलकत्ता जान ।
शिक्षक कवि वकील बन पत्रकार का कीना काम।
चार बार अध्यक्ष बने थे, कांग्रेस में था सम्मान।
कविता लिखी मकरंद नाम से,मदन मोहन जी चतुर सुजान।
अपनी स्वयं बनाई पार्टी जिसकी अलग बनी पहचान।
सपना रहा हमेशा उनका, हों स्वतंत्र ये हिंदुस्तान।
देश की आजादी की खातिर, अंग्रेजो से किया विरोध।
जनमानस को संग में लेकर अंग्रेजों से लिया प्रतिशोध।
बड़े मेहनती लगनशील थे, गांधी जी के रहे सहाय।
गांधी जी ने महामना की उनको उपाधि दीन गहाय।
देश भ्रमण कर चंदा जोड़ा,बी एच यू की नोव जमाई।
उन्नीस सौ पंद्रा सोलह में युनिवर्सिटी की नींव भराई।
हैदराबाद जाकर निज़ाम से, जाकर दीना हाल सुनाय।
करदी छोटी बात निज़ाम ने,हम जूती का देंगे दान।
समझ माजरा महामना ने जूती लेकर आते बाज़ार।
बोली लगन लगी जूती की,समझें सारी बात निज़ाम।
पास बुलाकर महामना को,तब दीना मनमाना दान।
काशी नरेश से जाके मिले तब सारी कहानी दई सुनाय।
तब उनकी काशी नरेश ने मन के मुताबिक करी सहाय।
तेरह सौ साठ एकड़ भूमि महामना को दई गहाय।
वीर बचऊ थे,इक यदुवंशी, महामना की करी सहाई।
विश्व विद्यालय बना निराला सारी दुनिया गई है मान।
हिंदू विश्वविद्यालय से ही महामना की है, पहचान।
सच्चे राष्ट्रभक्त भारत के, पत्रकार संग थे विद्वान ।
बारह नवंबर 1946, में तज कर गये सकल जहान।
धन दौलत सब मिट जाते हैं, लेकिन नाम काल न खाय।
केबलराम कृपा मैंने, शब्द यथोचित दिये मिलाय।
बलराम यादव देवरा छतरपुर