आम आदमी बेचारा मरता क्या न करता।
बड़े बड़े जो ख़्वाब थे देखे कैसे पूरा करता।
महंगाई की मार ने देखो कमर तोड़ दी पूरी।
दाम बड़े ज्यों चीजों के कसर रही न थोड़ी।
मार मार के मन अपना कैसे न आहे भरता।
आम आदमी बेचारा मरता क्या न करता।
घर और नौकरी के चक्कर मे फिरता जैसे फिरनी।
लोग विराते और चिढ़ाते हालात क्या है करली।
देखवे और दिखावे को कैसे न नाटक करता।
आम आदमी बेचारा मरता क्या न करता।
कितने वादे थे बीवी से कितने माई बाप से।
कैसे पूरे कर पाऊंगा पूछे अपने आप से।
वादे पूरे करने को चिंता में क्यों न घुलता।
आम आदमी बेचारा मरता क्या न करता।
इंदु विवेक उदैनियाँ
उरई (उत्तर प्रदेश)